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________________ छठा अध्ययन : धुत * १०९ * वैसे मोहित जीव भी करे न घर का त्याग । " नाना दुख सहता सदा, धर-धर भव-भव स्वाँग ।।७।। नाना कष्ट उपाधियाँ, बहुविध रोग सताय । इससे नर भव नष्ट हो, बाजी हाथ गँवाय । । ८ । । देख पराया कष्ट तुम, करो न पातिक काम । मुनि 'सुशील' समझो अरे, पाओगे आराम ।।९।। • अविवेक फलादेश • मूलसूत्रम् - तं सुह जहा तहा संति पाणा अंधा तमसि वियाहिया, तामेव सई अ सइं अइअच्च उच्चा वयफासे पडिसंवेएइ, बुद्धेहिं एयं पवेइयं संति पाणा वासगा रसगा उदए - उदयेचरा आगास गामिणो । पाणा पाणे किलेसंति, पासलोए महब्भयं । पद्यमय भावानुवाद सुनो ! सुनो इस कर्म का, फलादेश फरमान । चतुर्थ गति संसार में, नाना कष्ट विधान । । १ । । कोई अन्धा जन्म से, रहा कष्ट अति भोग । को है तेरी मदद में, स्वयं कमाये योग । । २ । । भावनयन से अन्ध जो, गिरे नरक तमकार । कौन बचाये सोच तू, चाहे क्यों परिवार । । ३ । । पुनि-पुनि दुख बहु योनि में, पाता जन्म अनेक । फिर भी समझ न पा रहा, जिसका अति अविवेक । ।४ । । जीव-जीव से घात हो, होते सब भयभीत । महान् भय संसार में, कैसे सुख जानो यह मानव अरे, तू संयम स्वीकार । सर्व दुखों से मुक्त हो, श्री जिनवर उद्गार । । ६ । । संगीत । । ५ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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