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________________ छठा अध्ययन : धुत पहला उद्देशक • संसार दशा मूलसूत्रम् ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से णरे, जस्स इमाओ जाइओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से णाणम पोलिस, से किट्टइ तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं । एवं एगे महावीरा विप्परक्कमंति, पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपणे से बेमि, से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छण्णपलासे उम्मग्गं से णो लहइ । भंजगा इव सण्णिवेसं णो चयंति । एवं एगे अणेग रुवेहिं कुलेहिं जाया रूवेहिं सत्ता कलुणं थांति णियाणओ । पद्यमय भावानुवाद बुद्ध पुरुष दें देशना, सुखकारी उपदेश । मुक्तिपंथ अरु धर्म में, उद्यत रहें हमेश । । १ । । तत्पर होते धर्म में, श्रावक अरु मुनि दोइ । धर्मपंथ चलते रहें, कर्म कष्ट दें खोइ । । २ । । जो नर पड़े प्रमाद में, नहीं असर उपदेश । मंद बुद्धि या मूढ़ मति, पग-पग पायें क्लेश । । ३ । । ढके नीर कछुआ रहे, जल ऊपर शैवाल । नहीं छिद्र शैवाल में, दिखे न गगन विशाल । । ४ । । जगत् सरोवर जानिये, कछुआ जीव विमूढ़ । विषय-भोग शैवाल सम, उपमा है यह गूढ़ । । ५ । । जैसे तरुवर जगह से, कभी न होता दूर । शीत ताप छेदन सदा, सहन करे भरपूर । । ६ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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