SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार पाँचवाँ उद्देशक • लघुकर्मा माहात्म्य • मूलसूत्रम् - वितिगिच्छासमावण्णेणं अप्पाणेणं णो लहइ समाहिं, सिया वेगे अणुगच्छंति असिया वेगे अणुगच्छंति, अणुगच्छमाणे हिं अणणुगच्छमाणे कहं ण णिव्विज्जे ? पद्यमय भावानुवाद संशययुक्त जो आत्मा, और समाधिविहीन । मुनि 'सुशील' श्रद्धा अडिग, कर लो ठोस यकीन । । १ । । हलुकर्मी गृहवास में, सहज सम्यक्त्व पाय। सूरि 'सुशील' सरल चित्त, तपः त्याग अपनाय । । २ । । कितने ऐसे लोग जो, कर लेते घर त्याग । प्राप्त करे सम्यक्त्व को, जिनका अडिग विराग । । ३ । । अनुसरण आचार्य का, करते भली प्रकार । उनका जीवन सफल है, कहते आगमकार । । ४ । । करे सूरि अवहेलना, बनकर के स्वच्छन्द । उनका जीवन विफल है, पाते भव-भव द्वन्द्व । । ५ । । मूलसूत्रम् - शिष्य दशा यह देखकर समझायें गुरुराज । निष्कारण करुणा करें, जिससे बनता काज ।। ६ ।। श्री जिनालय श्रद्धा • * १०१ * , तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । पद्यमय भावानुवाद जो-जो जिनवर ने कहा, वही सत्य निश्शंक । निष्ठा अरु विश्वास में, लाखो लाख नव रंग । । १ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy