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________________ पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार *९९* पद्यमय भावानुवाद गुरुवर आज्ञा धारण, करता सम्यक् सन्त। शयनादिक क्रिया सकल, यतनायुक्त समस्त ।।१।। फिर भी हिंसा हो अगर, अल्प कर्म का बन्ध। इह भव में परिणाम हो, कहते त्रिशलानंद।।२।। जानबूझ हिंसा करे, अरे मनुज जो कोय। प्रायश्चित्त कर लीजिए, विशुद्धि गहरी होय।।३।। • मोक्ष सिद्धि. मूलसूत्रम्से पभूयदंसी पभूयपरिण्णाणे उवसंते समिए सहिए सया जए, दटुं, विप्पडिवेएइ अप्पाणं किमेस जणो करिस्सइ ? एस से परमारामे जाओ लोगम्मि इत्थीओ, मुणिणा हु एयं पवेइयं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहिं अवि णिब्बलासए अवि ओमोयरियं कुज्जा अवि उड्डुटुं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाणुगाम दुइज्जिज्जा अवि आहारं वोच्छिदेज्जा अवि चए इत्थीसु मणं, पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाए त्ति बेमि, से णो काहिए, णो पासणिए, णो संपसारए, णो ममाए णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे परिवज्जए सया पावं, एयं मोणं समणुवा सिज्जासि। पद्यमय भावानुवाद साधक देख प्रत्यक्ष तू, कर्मों का परिणाम । यथार्थ रूप संसार का, पहचानो अविराम।।१।। मंडित पंडित ज्ञानमय, रक्षक मुनि छह काय। पाँच समिति से युक्त जो, तू उपशान्त कहाय।।२।। उक्त श्रमण सत्वर अहो! करे कर्म का अन्त। मोक्षसिद्धि वह सहज में, हाथोंहाथ तुरन्त ।।३।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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