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________________ ७८ श्री महानिशीथ सूत्रम्-अध्य०३ बत्तीससुरवरिंदा गुरुयपमोएण सव्वरिद्धीए . रोमंचकंचुपुलइयभत्तिब्भरमाइयसगत्ता' ॥८७।। मन्नते सकयत्थं जंमं अम्हाण मेरुगिरिसिहरे होही खणमप्फालियसूसरगंभीरदुंदुहिनिग्घोसा ।।८८।। जयसद्दमुहलमंगलकयंजली जह य खीरसलिलेणं बहुसुरहिगंधवासियकंचणमणितुंगकलसेहिं ।।८९।। जम्माहिसेयमहिमं करेंति जह जिणवरो गिरिं चाले ॥८९।। जह इंदं वायरणं भयवं वायरइ अट्ठवरिसो वि । जह गमइ कुमारत्तं परिणे बोहिंति जह व लोगंतिया देवा ।।९०।। जह वयनिक्खमणमहं करेंति सव्वे सुरासुरा मुइया । जह अहियासे घोरे परीसहे दिव्वमाणुसतिरिच्छे ॥९१॥ जह घणघाइचउक्कं कम्मं डहइ घोरतवझाणजोग-अग्गीए। . लोगालोगपयासं उप्पाए जह व केवलं नाणं ।।९२।। केवलमहिमं पुणरिव काऊणं जह सुरासुराईया । पुच्छंति संसए धम्मणीइतवचरणमाईए ।।९३।। जह व कहेइ जिणिंदो सुरकयसीहासणोवविट्ठो य ।।९३।। तं चउविहदेवनिकायनिम्मियं, जह पवरसमवसरणं, तुरियं करेंति देवा, जं रिद्धीए जगं तुलइ ।।९४।। १. मातस्वगात्रा इति । २. 'परिणेणे' क्वचिदिति ।
SR No.022581
Book TitleMahanishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandravijay
PublisherJain Sangh Pindwada
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size18 MB
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