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________________ श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्र -प्रस्तावना वरसाद बंध न रह्यो होय तो मागशर महिनामां जे दिवसे बंध थाय ते ज दिवसे विहार करवो. उत्कृष्टे करी मागशरनो मासकल्प करे. ते मागसर सुद पुनम सुधी जाणवुं. तदुपरांत रहे तो चार लघुमासनुं प्रायश्चित्त. ए रीते पंच मासिक ज्येष्ठ अवग्रह मासकल्प करीने सकारण त्यां ज स्थिरता करे, तो छ मासिक ज्येष्ट अवग्रह थाय. मरकी आदिना रोगना कारणे गाम बहार रह्या होय तो छ मासिक ज्येष्ठ मासकल्प जाणवो. जो व्याघातनुं कारण बने तो विकल्पथी जया करवी. जो विचरवा लायक भूमि होय तो पडवामां विहार करे. आ प्रमाणे कार्तिक वद १, फागण वद १, चैत्र वद १ अने अषाढ वद १, कोई ठेकाणे जोवाय छे, के निशीथोक्त अपूर्ण चातुर्मासे नीचेना कारणो होय तो विहार कराय. जीवाकुल भूमि होय, संस्तारके पाणी पडतुं होय, गोचरी पूरी न मळती होय, राजा तरफथी भय होय, सर्पनो उपद्रव होय, कुंथुआ तेम ज अग्निनो उपद्रव होय, मांदगीना कारणे दवा माटे जवुं पडे. हवे नीचेना कारणोथी चातुर्मासथी अधिक रहेवुं कल्पे. वरसाद विरम्यो न होय, रस्ता कादववाळा होय. बीजे मरकी आदिनो उपद्रव होय, बीजे राजा दुष्ट होय, सर्प विगेरेनो उपद्रव बीजे होय अने औषधी विगेरेनुं साधन ते क्षेत्रमां सारुं न होय तो अधिक रहीने पण विहार करवो कल्पे. (आ कालस्थापना जाणवी) . अथ क्षेत्रस्थापना कहेवाय छे. जे क्षेत्रमां मुनिराज चोमासुं रहे ते क्षेत्रनी तमाम दिशामां पांच गाउनो अभिग्रह करवो. (आ अवग्रहमां बे माइलनो एक गाउ समजवो.) शिष्य प्रश्न० केवी रीते छए दिशामां विचरी शकाय ? उ. पूर्व-पश्चिमउत्तर-दक्षिण-ऊर्ध्व-अधो-छ दिशाओ अने चार विदिशाओ असंव्यवहारीकृत एक प्रदेशिकी होवाथी ए चारने मूकीने ते छए दिशामां एक एक दिशामां अढी गाउ जाय, अने आवे एटले पांच गाउ थई जाय. हवे बीजो प्रश्न० छ दिशा स्पष्ट रीते जणावो ? उ. पर्वतना शिखरना भागे गाम होय, मध्य भागमां गाम होय, मध्यम गामनी चारे दिशामां गाम होय, .... þá XXV áááááð
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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