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________________ संवत्सरी अंगे आर्य कालकसूरि प्रसंग कारण नथी ने ? तो शास्त्र आज्ञा प्रमाणे पुनम अने पांचम केम न करवी ? उ. आर्य गुरुदेवना वाक्यने ऊडाणथी विचार्यु होय तो आ संभ्रम थात ज नहि. अनन्तज्ञानीओ जणावे छे के जो बार मासनी अंदर न खमावे तो अनन्तानुबंधी कषायनो बंध पडे छे. अनन्तानुबंधी जीव मिथ्यात्व गुणस्थानके होय छे. विचार करतां जणाय छे के पांचमनी क्षमापना छट्टे थई शके नहि तेम चोथनी करेली क्षमापना फरी पांचमे शी रीते थाय ? जेम चोथनी पांचम न थाय तो चउदसनी पुनम शी रीते थाय ? अने जो करवा जाय तो वरसनु उल्लंघन थयुं गणाय, माटे चोथ अने चउदसनी आराधना ज उचित छे. हवे भिन्न भिन्न पंचांगमां कराती आराधनानो विचार करीए. दाखला तरीके करणाटकी पंचांगमां चोथ शनिवारे होय, गुजराती टीपणामां चोथ सोमवारे होय तेम ज मारवाडी पंचांगमां चोथ रविवारे होय, एवी रीते भिन्न भिन्न देशोमां वसता जैनीओए कया वारे चोथ आराधवी तेनी मुश्केली ऊभी थाय, माटे एक ज पंचांगने स्वीकारवामां आवे तो आ मुश्केली दूर थाय तेवी छे. एवी रीते बेवडी तिथिओमां पण समजवू.) जे क्षेत्रमा आषाढ सुद दशम करी होय, अथवा अषाड मासकल्प कर्यो होय अने ते क्षेत्र चोमासा योग्य होय, बीजू न होय, अथवा तपासमां अन्य क्षेत्र चातुर्मास योग्य होय, गुणे करी योग्य क्षेत्र होय, संस्तारक, डगल आदि भूमि, वृद्धवास गाढ कारणने निरंतर रहेवानुं आरंभ्यु होय तो अषाड पूर्णिमाए पर्युषणा करे. ए प्रमाणे पांच दिवस ओछा करीने कहेवाय छे. अहिं जघन्यथी सित्तेर दिवस, मध्यमथी एंसी तथा नेवं दिवस, उत्कृष्टथी एकसो दस दिवस. जो वरसाद आदिनं कारण होय तो मागशरना दस दिवस एम त्रण उत्कृष्ट अवग्रह छे. जे मुनि भादरवा सुद पांचमे स्थिरता करे, तेओने जघन्यथी सित्तेर दिवसनो ज्येष्ठावग्रह. अहिं प्रश्नकार पूछे छे के शी रीते सित्तेर दिवस थाय ? कारण के चार मासना एकसो ने वीश दिवस थाय. उ. शेष पचास दिवस क्षेत्र शोधवामां गया, तेथी सित्तेर दिवसनो अवग्रह. जे मुनिराजो भादरवा वद दसमे पर्युषणा करे तेओए एंशी दिवसनो ज्येष्ठ अवग्रह. एवी रीते जे श्रावण सुदि पुनमे पर्युषणा करे तेमनो नेवू दिवसनो मध्यमथी ज्येष्ठ अवग्रह. जे श्रावण वद दसमे चोमासु रह्या तेओने एकसो ने दस दिवसनो अवग्रह. इत्यादि प्रकारोवडे चोमासु एक क्षेत्रमा रहेला साधुओए कार्तिकी पुनमे विहार करी जवो. जो ఉటంతంంంంంంంంం XXIV అంతంతమంతయంతం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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