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________________ Sad हरिगीत-छंद. अरिहंतना सिद्धांत ने बहुमानथी अवलोकता, ते कथन ने अनुसार नित्ये प्रेमपूर्वक वर्त्तता; ए समितिधारी सद्गुरु ने सुखद कारणे पामजो, गुणियल गणि गुरुराज तेना चरणमां शिर नामजो. ॥१॥ - करी नयन नीचा मार्गमा मग्न थइने चालता, करुणारसे थइ रसिक जे निर्दोष जंतु पालता; इर्या समिति युक्त ते गुरुने स्तवी दुःख वामजो, गुणियल गणि गुरुराज तेना चरणमां शिर नामजो. ॥ २॥ - भाषा समीति साचवी जे मधुर वचनो बोलता, निर्दोष लइने आहार जे शुभ एषणा गुण तोलता; करी भक्ति ते गुरूरत्ननी कदि ते थकी न विरामजो, गुणियल गणि गुरुराज तेना चरणमां शिर नामजो. ॥३॥ निज सर्व साधन रत्नथी जे ग्रहण करता मूकता, मल मूत्र भूमि परठवा उपयोग नहि कदि चूकता; पांचे समीति साधता गुरुपास जइ विश्रामजो, गुणियल गणि गुरुराज तेना चरणमां शिर नामजो. ॥४॥ पापी विचारो ने हरी मनगुप्तिथी सुविचारता, कर नयन चेष्टा संहरी जे वचनगुप्ति धारता; परिषह खमी वपु गुप्तिधारक ते हृदे संक्रामजो, गुणियल गणि गुरुराज तेना चरणमां शिर नामजो. ॥५॥ श्री दशवैकालिक सूत्रम् /४
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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