SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "दशम सभिक्षु अध्ययन" उपयोगी शब्दार्थ : निक्खम्म गृहस्थावास से निकलकर, हविजा होता है, वसं परतंत्रता, पडियायइ पान करे, सेवन करे॥१॥ सुनिसीयं अतितीक्ष्ण धार युक्त॥२॥ वहणं हिंसा, पए पकावे।४। रोइय रूचि धारणकर अत्तसमे स्व समान मनेज माने छप्पि काए छ काय।५। धुवजोगी स्थिर योगी, अहणे पशु से रहित।६। निज्जाय-रूव रयो स्वर्ण रूपयादि का त्यागी।७। होही होगा अट्ठो काम के लिए, सुमे कल, परे परसों निहे रखें, निहाव रखावे।८। छन्दिय बुलाकर, आमंत्रित कर।९। वुम्पहियं क्लेश युक्त निहु इन्दिओ इंद्रियों को शांत रखनेवाला अविहेड तिरस्कृत न करना, उचित कार्य में अनादर न करना।१०। गाम कंटओ इन्द्रियों को दुःख का कारण, तज्जणाओ तर्जना मात्सर्य वचन, सप्पहासे अट्टहास्ययुक्त, समसुहदुक्खसहे समभावपूर्वक सुखदुःख सहन करे।११। भीयो भय पावे, दिअस्स देखकर, अभिकंखो इच्छा रक्खे।१२। असई सर्वकाल वोसट्ठचत्तदेहे रागद्वेष रहित, आभूषण रहित देह युक्त वचन से घायल अकुट्ठ तुच्छकार के वचन से घायल, हओ दंड से घायल, लूसिओ खड्गादि से घायल।१३। अभिभूय जीतकर, विइत्तु जानकर, सामणिए साधु को।१४। जाइपहाओ जातिपथ संसारमार्ग से संजए वश में रखने वाला, (अज्झप्परओ) अध्यात्म में लीन।१५। उवहिम्मि उपधि में, संगावगो द्रव्य भाव संग रहित, अन्नायउँछं अपरिचित घरों से शुद्ध अल्प वस्त्र लेने वाला पुल निप्पुलाओ चारित्र में असारता उत्पन्न करने वाले दोषों से रहित।१६। अलोल लोलुपता रहित, इहिं ऋद्धि आदि लब्धि को, अणिहे माया रहित।१७। वओज्जा कहे। १८। अज्जपयं शुद्धधर्म को कुसीललिंगं कुशीलता की चेष्टा को, हासंकुहओ हास्य करने वाला।२०। छिन्तित्तु छेदी ने।२१। श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ११९
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy