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९४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २३) दीसंति बहवे लाए, पासबद्धा सरोरिणी ।। मुक्कपासो लहुब्भूओ, कह तं विहरसी मुणी ॥ ४० ॥ ते पासे सव्वसो छित्ता, निहतूण उवायओ । मुक्कपासो लहुन्भूओ, विहरामि अहं मुणी ॥ ४१ ॥ पासा य इइ के वुत्ता कसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंत तु, गायमा इणमब्बवी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा, नेहपासो भयंकरो । ते छिदित्ता जहानाय, विहरामि जहक्कम ॥ ४३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते. छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४४ ॥ अताहिययस भूया, लया चिटुइ गोयमा । फलेइ विसभक्खाणि, सा उ उद्धरिया कहं ॥ ४५ ॥ त लयं सव्वसो छित्ता, उत्तरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६ ।। लया य इइ का वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंत तु, गोयमो इणमब्बवो ॥ ४७ ॥ भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलादया । तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहासुहं ॥ ४८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपन्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा । जे डहति सरीरत्था, कहं विज्झाविया तुमे ॥ ५० ॥