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________________ पठ + क्तवत्-पठितवत पुं०- पठितवत्- पठितवान् पठितवन्तौ । पठिवन्तः । (like गुणवत्) स्त्री- पठितवती- पठितवती क पठितवत्यौ पठितवत्यः (like नदी) नपुं०-पठितवत्- पठितवत् पठिवती पठितवन्ति (like जगत्) 2.क्त- (i) इसका प्रयोग भी भूतकाल के अर्थ में होता है (Usedin past tense) (ii) इसका प्रयोग कर्मवाच्य में होता है (Used in कर्मवाच्य) (iii) गत्यर्थक धातुओं के साथ इसका प्रयोग कर्तृवाच्य या कर्मवाच्य दोनों में हो d, सकता है (Used in कर्तृवाच्य or कर्मवाच्य with गत्यर्थक verbs. __(iv) इसका प्रयोग क्रिया तथा विशेषण, दोनों रूपों में हो सकता है (used as a "verb as well as an adjective) उदाहरण-बालेन पुस्तकं पठितम् । बालेन हसितम् । बालः हसितः । पठितम् पुस्तकं कुत्रस्ति ? निजा की लाश विका पठ् + क्त = पठित पुं०- पठित- पठितः पठितौ पठिताः (like देव), स्त्री०-पठिता- पठिता पठिते पठिताःvino (like लता) नपुं०- पठित- पठितम् पठिते पठितानि (like फल) 3. तव्य- (i) इसका प्रयोग 'चाहिए' के अर्थ में होता है (Used in the sense of 'should (ii) इसका प्रयोग सदा कर्मवाच्य में होता है (Used in कर्मवाच्य) (iii) इसका प्रयोग क्रिया तथा विशेषण, दोनों रूपों में हो सकता है (Used as a verb as well as an adjective) को मिला उदाहरण-बालेन कथा पठितव्या । पठितव्या अस्ति इय कथा । पठ् + तव्य = पठितव्य पं०- पठितव्य- पठितव्यः पठितव्यौ र पठितव्याः (like देव) स्त्री०-पठित्वा- पठितव्या पठितव्ये पठितव्याः प (like लता) नपुं०-पठितव्य-11 12 पठितव्ये पठितव्यानि (like फल) नोट-क्तवतु क्त और तव्य से बने रूप यहाँ केवल प्रथमा विभक्ति में ही दिए गए हैं। क्रिया के रूप में केवल प्रथमा विभक्ति के रूप ही प्रयोग में आते हैं । परन्तु विशेषण के रूप में अन्य विभक्तियों के रूप भी प्रयोग में आ सकते हैं । (Forms of क्तवतु, क्त and तव्य are given in प्रथमा विभक्ति only.As a verb, only the प्रथमा विभक्ति is used. As adjectives, however, form in other vibhaktis can also be used.) 4. शत- (i) शतृ प्रत्यय से बना रूप शत्रन्त कहलाता है। यह-(A form made with शतृ suffix is called शत्रन्त. This- वर्तमान काल में हो रही क्रिया का बोध कराता है (Express an ongoing action in present) 98 पठितव्यम्
SR No.022547
Book TitleSanskrit Sopanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Gambhir
PublisherPitambar Publishing Company
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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