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________________ 2. कर्मवाच्य-कर्ता तृतीया विभक्ति में, कर्म प्रथमा में, क्रिया सदा कर्म के अनुसार (कर्ता in तृतीया, कर्म in प्रथमा, and verb according to कर्म) उदाहरण-बालैः गीता पठ्यते । कर्म यदि न हो तो (If there is no कर्म, then)- पडएकाही क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन (लकार क्रिया)ील. अथवा, क्रिया नपुसंकलिंग, प्रथमा वि०, एक व० (कृदन्त क्रिया) (verb in प्रथम पुरुष एकवचन form with लकार verb, or in नपुं०, प्रथमा वि०ए०व० with कृदन्त verb)उदाहरणम-बालैः पठ्यते । बालैः पठितम् । बालैः पठितव्यम् । 3. भाववाच्य-कर्ता तृतीया विभक्ति में, क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन (लकार क्रिया) अथवा नपुंसकलिंग प्रथमा विभक्ति एकवचन (कृदन्त क्रिया) (कर्ता in तृतीया, and verb in प्रथम पुरुष एकवचन (लकार क्रिया) or नपुं० प्रथमा वि०ए०व० (कृदन्त क्रिया) उदाहरणम्-बालैः हस्यते । बालैः हसितम् । बालैः हसितव्यम् । नोट-भाववाच्य में केवल अकर्मक धातुओं का ही प्रयोग होता है और कर्मवाच्य में केवल सकमर्क धातुओं का प्रयोग होता है (In भाववाच्य, only अकर्मक verbs are used, and in कर्मवाच्य, only सकमर्क verbs are used). सकमर्क धातु-जिनके साथ कर्म आ सकता है । जैसे पट्, लिख् आदि (A verb capable of having an object, e.g., पठ, लिख, etc.) अकमर्क धात-जिनके साथ कर्म आ ही नहीं सकता; जैसे हस्, स्था आदि (A verb.not capable of having an object, e.g., हस्, स्था, etc.) नोट-धातु का कर्मवाच्य या भाववाच्य रूप बनाने के लिए धातु रूप के बाद य जोड़ दीजिए। ऐसी कर्मवाच्य धातु के रूप सदा आत्मनेपद में चलेंगे; जैसे- पठ्य, चल्य, खाद्य, के रूप बनेंगे-पठ्यते, चल्यते, खाद्यते । लुट में य नहीं लगेगा; जैसे-पठिष्यते, चलिष्यते, खादिष्यते (In order to make the कर्मवाच्य or भाववाच्य form of a.verb, add य after the root the conjugate in आत्मनेपदम्, e.g.,पाठ्य, चल्य,खाद्य becoming पठ्यते, चल्यते, खाद्यते, etc. (In लुट्, there will be no additional य in the middle.) कृदन्त प्रत्ययाः 1. क्तवतु- (i) a इसका प्रयोग भतकाल के अर्थ में होता है (Used in past tense) (ii) a इसका प्रयोग केवल कर्तवाच्य में होता है ( Used in कर्तृवाच्य) (iii) a इसका प्रयोग क्रिया तथा विशेषण- दोनों रूपों में हो सकता है (Can be used as a verb as well as an adjective). P r e (1) उदाहरण-बालः पठितवान् । (क्रिया) पठितवान् बालः गृहं गच्छति । (विशेषणम्)
SR No.022547
Book TitleSanskrit Sopanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Gambhir
PublisherPitambar Publishing Company
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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