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________________ तदा शशकः तम् सिंहम् कूपम् अनयत्। भासुरकः कूपे स्वम् प्रतिबिम्बम् अपश्यत्। स प्रतिबिम्बम् एकम् अन्यम् सिंहम् अवागच्छत्। तत् मारयितुम् सः कूपे अपतत् अनश्यत् च। अतः प्राज्ञः कथयति-'यस्य बुद्धिः बलम् तस्य'। शब्दार्थाः) अभिधानम् मृगः एकदा मृगराजः क्रमेण स्वयम् तृप्तः शशकः नाम mes पशु एक बार पशुओं का राजा बारी से प्रोमा खुद नाममा तृप्त काल खरगोश (name) (animal)ीजापुर (once) (king of animals) (by turn) (oneself) (satisfied) (rabbit, hare) वारः बारी (turn) अन्यः (other) (king of the forest) वनराजःSiboy. स्ममाsiddh (past tense maker) दूसरा वन का राजा (भूतकाल बनाने वाला , अव्यय) परछाईं शक्ति प्रतिबिम्बः (shadow) बलम् (strength) उपसर्ग-युक्त धातु (Verb-root with prefix)—प्रति + वद्, आ + गम् (गच्छ) अव + गम् (गच्छ्) /नया विशेषण (New Adjective)- तृप्तः तृप्ता तृप्तम् नया अव्यय (New avyayas)- एकदा, क्रमेण विशेष-प्रयोगः – मारयति स्म, आगच्छति स्म - ये भूतकाल के रूप हैं। लट्लकार के रूप के बाद स्म लगाने से भूतकाल का रूप बन जाता है।
SR No.022545
Book TitleSanskrit Sopanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Gambhir
PublisherPitambar Publishing Company
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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