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________________ ६८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ कुशीला: द्विधा भवन्ति प्रतिसेवना कुशीला:, कषाय कुशीलाश्च। ईर्यापथप्राप्ता: वीतराकच्छद्मस्था निर्ग्रन्थाः। येषु सर्वज्ञता प्रकटिता ते स्नातका: कथ्यन्ते। * सूत्रार्थ - पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक- ये निर्ग्रन्थ के पाँच प्रकार है। ___* विवेचनामृतम् * निर्गन्थ शब्द का निश्चयनय के द्वारा प्रस्तुत अर्थ भिन्न है तथा व्यवहारनय की अपेक्षा से भिन्न। द्विविध अर्थों के एकीकरण को ही यहाँ निर्गन्थ सामान्य मानकर, उसके पाँच भेदप्रदर्शित किए गए हैं १. पुलाक - मूलगुण तथा उत्तर गुण में परिपूर्णता प्राप्त न करते हुए भी वीतराग के द्वारा प्रस्तुति आगम से कभी विचलित नहीं होने वाला निर्ग्रन्थ पुलाक कहलाता है। २. बकुश - शरीर और उपकरण के संस्कारों का अनुशरण करने वाला, सिद्धि तथा कीर्ति का अभिलाषी, सुखशील, अविविक्त, परिवारवाला तथा छेद(चारित्र) पर्याय की हानि तथा शबल अतिचार दोषों से युक्त निर्ग्रन्थ को बकुश कहते हैं। ३. कुशील - कुशील के दो प्रकार हैं- १. इन्द्रियों के अधीन होने के कारण उत्तर गुणों की विराधनामूलक प्रवृत्ति करने वाला प्रतिसेवनाकुशील कहलाता है। २. तीव्रकषाय के वश न होकर कदाचित् मन्दकषाय के वशीभूत हो जाने वाला कषायकुशील कहलाता है। ४. निर्ग्रन्थ - सर्वज्ञता न होने पर भी जिसमें राग-द्वेष का अत्यन्त अभाव-सा होता है तथा अन्तर्मुहुर्त के बाद ही जिसकी सर्वज्ञता प्रकट होने वाली है, उसे निग्रन्थ कहते हैं। ५. स्नातक - जिसमें सर्वज्ञता, प्रोद्भासित हो, उसे स्नातक कहते हैं। * निर्ग्रन्थानां विशेषता: * ॐ मूल सूत्रम् - संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपातस्थानविकल्पतः साध्याः॥४९॥ म सुबोधिका टीका संयमेति। पूर्वं येषां पञ्चप्रकारकाणां निग्रन्थानां वर्णनं कृतं तेषां विशेषस्वरूपबोधनायात्र विचारः कृतः। एते पुलाकदाय: पञ्चनिर्ग्रन्थाः एतैः संयमादिभिरनुयोगविकल्पैः साध्या: भवन्ति।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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