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________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * विवेचनामृतम् कर्मबन्धानों का सर्वथा क्षय मोक्ष कहलाता है तथा आंशिक क्षय निर्जरा । निर्जरा, मोक्ष का पूर्वगामी अंग है। यद्यपि समस्त संसारी आत्माओं में कर्मनिर्जरा का क्रम जारी रहता है तथापि यहाँ विशिष्ट आत्माओं की कर्म निर्जरा के क्रम का विशद वर्णन किया गया है। ९ । १ * ܀ ܀ ܀ 1 जिस अवस्था में मिथ्यात्व दूर होकर सम्यक्त्व का आविर्भाव होता है उसे, सम्यग्दृष्टि कह है। जिसमें अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से अल्पांश में विरति (त्याग) उद्भूत होती है, उसे श्रावक कहते हैं। [ ६७ जिसमें प्रत्याख्यानानावरण कषाय के क्षयोपशम से सर्वांश में विरति प्रकट होती है, उसे विरत कहते हैं। जिसमें अनन्तानुबन्धी कषाय का क्षय करने योग्य विशुद्धि प्रकट होती है, उसे अनन्त वियोजक कहते हैं। जिसमें दर्शनमोह का क्षय करने योग्य विशुद्धि प्रकट होती है, उसे दर्शनमोहक्षपक कहते हैं। जिस अवस्था में मोह की शेष प्रकृतियों का उपशम जारी रहता है, उसे उपशमक कहते हैं। जिसमें उपशम पूरा हो चुका हो, उसे उपशान्त कहते हैं। जिसमें मोह की शेष प्रकृतियों का क्षय जारी हो उसे क्षपक कहते हैं । जिसमें मोह का क्षय पूर्ण सिद्ध गया हो, उसे क्षीण मोह कहते हैं। जिसमें सर्वज्ञता प्रकट हो गई हो, उसे जिन कहते हैं। 5 मूल सूत्रम् - पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थस्नातकाः निर्ग्रन्थाः ॥४८॥ सुबोधिका टीका पुलकेति । निर्ग्रन्थानां पञ्चप्रकारा भवन्ति तद्यथा - पुलाको बकुश: कुशीलो निर्ग्रन्थः, स्नाकश्चेति। एतेषु प्रत्येकस्य स्वरूपमित्थम् - ये जिनोपदिष्टा + गमेभ्य: विचलिता नैव भवन्ति ते पुलाक निर्ग्रन्थाः कथ्यन्ते। ये निर्ग्रन्थतां प्रति समुत्सुकाः सन्ति, तत्परिपालनमपि कुर्वन्ति किन्तु शरीरमपि भूषयन्ति । ये च छेदचारित्र शबलिताः सन्ति ते बकुश निर्ग्रन्थाः कथ्यन्ते ।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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