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________________ ३२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ * विवेचनामृत * बुद्धि या ज्ञान का मद 'प्रज्ञा परिषह' कहलाता है। अल्पाज्ञता का कारण ज्ञानावरण कर्म होता है। ज्ञानमद, अल्पज्ञता अथवा अज्ञता का ही सूचक है। ज्ञानावरण क्षयोपशम के कारण आविर्भूत बुद्धि (प्रज्ञा) तो पृथक है- वह प्रज्ञा परिषह नहीं है। प्रज्ञा एवं प्रज्ञापरिषह को एक समझना नितान्त चिन्तनीय है। प्रज्ञा एवं प्रज्ञापरिषह में पर्याप्त अन्तर है। ज्ञानावरण के क्षयोपशम से उद्भूत बुद्धि 'प्रज्ञा' कहलाती है। जबकि प्रज्ञा अर्थात् ज्ञान का मद(अहंकार) होना प्रज्ञा परिषह कहलाता है। अतएव ज्ञानावरण कर्मोदय को प्रज्ञा परिषह का कारण बताना सर्वथा तर्कसंगत है। ॐ सूत्रम् - दर्शनमोहान्तराययोर + दर्शनालाभो॥६-१४॥ 卐 सुबोधिका टीका दर्शनमोहेति। दर्शनमोहनीयकर्मणः अन्तरायकर्मण: चोदये सति अदर्शन परिषहः, अलाभपरिषहश्च भवतः। अदर्शनं नाम अतत्त्वार्थ श्रद्धानम्। एषा परिणतिदर्दर्शनमाहोदयात् संजायते। * सूत्रार्थ - दर्शन मोहनीय कर्म तथा अन्तराय कर्म के उदय के कारण क्रमश: अदर्शन परिषह तथा अलाभ परिषह होते है। * विवेचनामृत * अदर्शन का तात्पर्य है- अतत्त्वश्रद्धान। यह स्थिति दर्शनमोह के कारण ही उपस्थिति होती है। कभी-कभी उत्कृष्ट तपस्वी सन्तों को भी अतत्त्वश्रद्धान अर्थात् अदर्शन भाव से गुजना पड़ता है। जैसे कोई घोर तपस्वी सन्त, यदि इस प्रकार से सोचता है कि शास्त्रों में तपश्चर्या के फलस्वरूप अनेक ऋद्धियों एवं सिद्धियों का वणन प्राप्त होता है किन्तु मुझे कई वर्षों से घोर तपस्या करने पर भी कोई ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त नहीं हुई है। अत: शास्त्रलिखित,प्रलोभन मात्र है। वास्तव में तपश्चरण से ऐसा कुछ प्राप्तव्य नहीं है। इसी प्रकार यदि कभी लाभान्तराय के कारण आहार लाभ न होने पर यदि सन्त में व्याकुलता हो अलाभ परिषह कहते हैं। ॐ सूत्रम् - चरित्रमोहनाण्यारितस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचना-सत्कार-पुरस्काराः॥६-१४॥
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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