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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३१ ॐ सूत्रम् - वादरसंपराये सर्वे॥६-१२॥ # सुबोधिका टीका वादरसंपराय इति। नवमगुणस्थानपर्यन्तं सर्वेऽपि द्वाविंशति परिषहाः संजायन्ते। वादर नाम स्थूलकषायः। यावत् स्थूलकषायोदय: प्राप्यते तावत् नवमगुण स्थानं वादरसम्पराय: कथ्यते। वादरसम्पराये सर्वेषामपि परिषहानां संभावना भवति। द्वाविंशति परिषहानां सम्भावना नानाजीवापेक्षया वर्तते न तु एक जीवापेक्षया अथवा काल भेदात् एकस्यापि जीवस्य सर्वे परिषहा भवितुमर्हन्ति। वस्तुत: एकस्मिन् काले एकस्य जीवस्य एकोनविंशतिपरिषहा एव भवितुमर्हन्ति न तु ततोऽधिका: किन्तु काल भेदात् सर्वेऽपि द्वाविंशति परिषहा भवितुमर्हन्ति। * सूत्रार्थ - वादर संपराय (स्थूलकषाय) पर्यन्त अर्थात् नवम गुणस्थान पर्यन्त सभी (बाईस) परिषह सम्भव है। * विवेचनामृत * नवम (नौवें) गुण स्थान तक समस्त बाईस परिषह उत्पन्न होते। वादर का तात्पर्य हैस्थूल कषाय। जब तक स्थूल कषायों का उदय रहता है तब तक नवम गुणस्थान वादसंपराय कहलाता है। बादरसम्पराय में सभी परिषहों की संभावना बनी रहती है। बाईस परिषहों की संभावना अनेक जीवों की अपेक्षा से है एक जीव की अपेक्षा से नही। अथवा काल भेद से एक जीव के १९ परिषह ही हो सकते है, उससे अधिक नही। ॐ सूत्रम् - ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने॥६-१३॥ सुबोधिका टीका ॥ ज्ञानावरण इति। ज्ञानावरणकर्मोदयात् प्रज्ञापरिषहः अज्ञान परिषहश्च भवतः। बुद्धर्ज्ञानस्य वा मद:-प्रज्ञापरिषहः कथ्यते। अल्पज्ञताया: कारणं ज्ञानावरण कर्म एव विद्यते। ज्ञानावरणक्षयोपशमात् आविर्भूता बुद्धिः प्रज्ञा त्वन्यत्। * सूत्रार्थ - ज्ञानावण कर्म के उदय से प्रज्ञा परिषह तथा अज्ञान परिषह नामक दो परिषह होते है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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