SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८।२५ ] अष्टमोऽध्यायः [ ५१ * प्रश्नम् - कीदृशं बद्धयन्ते ? प्रत्युत्तरम् - सूक्ष्मं बद्धयन्ते, बादरं न बद्ध्यन्ते । तथैक ( श्रात्मप्रदेशादभिन्नं ) क्षेत्रेऽवगाहः स्थिरं तिष्ठति तदा बद्ध्यन्ते । * प्रश्नम् - प्रात्मनः कः प्रदेशो बद्ध्यन्ते ? प्रत्युत्तरम् - प्रात्मनः सर्वप्रदेशेषु सर्वकर्मप्रकृतीनां पुद्गलाः बद्ध्यन्ते । * प्रश्नम् - कीदृशः पुद्गलाः बद्ध्यन्ते ? प्रत्युत्तरम् - अनन्तानन्तप्रदेशात्मककर्मणः पुद्गलाः भवन्ति ते एव बद्ध्यन्ते, किन्तु सङ्ख्यातप्रदेशी असङ्ख्यातप्रदेशी अथवा अनन्तप्रदेशी पुद्गला प्रग्रहणयोग्या भवन्ति, तस्मात् ते न बद्ध्यन्ते ।। ८-२५ ।। * सूत्रार्थ - कर्मप्रकृति के काररणभूत सूक्ष्म, एक ही क्षेत्र में अवगाहन करके रहे हुए अनन्तानन्त प्रदेश वाले पुद्गल योगविशेष के द्वारा समस्त प्रोर से समस्त आत्मप्रदेशों में बन्ध को प्राप्त होते हैं । इस प्रकार कर्मग्रहण योग्य पुद्गलप्रदेशों का जीव- प्रदेशों के साथ बन्ध हो जाना प्रदेशबन्ध है ।। ८-२५ ।। विवेचनामृत बध्यमान कर्म के कारणभूत कर्म पुद्गलों का सर्व प्रकार के योगविशेष द्वारा सूक्ष्मरूप से रहे हुए एक प्रदेशक्षेत्रावगाही अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्ध को समस्त आत्मप्रदेशों से सब प्रात्मप्रदेशों में वन्ध होता है । अर्थात् - नामनिश्रित्तक - प्रकृतिनिमित्तक, समस्त तरफ से, योगविशेष से, सूक्ष्म, एकक्षेत्रावगाढ़, स्थिर सर्व आत्मप्रदेशों में, अनन्तानन्त प्रदेशवाले अनन्त कर्मस्कन्ध बन्धाते हैं । * जीव- श्रात्मा के साथ कर्मस्कन्ध योग्य पुद्गल प्रदेशों के सम्बन्ध को प्रदेशबन्ध कहते हैं । . इस विषय में आठ प्रश्न उत्पन्न होते हैं । उसी को इस प्रस्तुत सूत्र से समझना प्रति आवश्यक है । ( १ ) प्रश्न - कर्म स्कन्धों के बन्ध से क्या निर्मित होता है ? उत्तर - आत्मप्रदेशों के साथ बँधे हुए पुद्गल स्कन्ध कर्म भाव अर्थात् - ज्ञानावरणीयादि प्रकृति रूप से परिणत होते हैं यानी उनसे कर्मप्रकृतियों का निर्माण होता है। इसलिए वे कर्म
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy