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________________ ४० ] श्रोतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ६२ तच्चाग्निप्रवेशमरुत्प्रपातजलप्रवेशादि । तदेवं सरागसंयमः संयमासंयमादीनि च देवस्यायुष प्रास्रवा भवन्ति ।। ६-२० ।। * सूत्रार्थ-सरागसंयम, देशविरति, अकामनिर्जरा तथा बालतप- देवायु के प्रास्रव हैं ॥ ६-२० ।। विवेचनामृत सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप ये देवायुष्य के प्रास्रव होते हैं । (१) हिंसा तथा असत्यादि महत् दोषों के विरमण अर्थात् त्याग को संयम कहते हैं । संयम, विरति, व्रत ये सभी एकार्थवाची शब्द हैं। उसके होते हुए भी कषाय के अंश का जहाँ तक सम्पूर्ण रूप से प्रभाव नहीं हो वहाँ तक उसे 'सराग संयम' कहते हैं। (२) अहिंसादिक व्रतों का यत्किञ्चिद् रूप से पालन करने को 'संयमासंयम' कहते हैं। संयमासंयम, देशविरति तथा अणुव्रत ये भी एकार्थवाची शब्द हैं । (३) स्वच्छन्दता या पराधीनता के कारण भोगवृत्ति से निवृत्त होना या कर्मों के भोग को 'प्रकाम-निर्जरा' कहते हैं । (४) बालतप-अर्थात् अविवेक अथवा मूढ़ भाव से जो तपश्चर्या की जाय। जैसे-अग्नि या जल में प्रवेश करना, पर्वत पर से झपापात करना अर्थात् नीचे गिरना। इस तरह मिथ्यात्व भाव से की हुई क्रियाओं को 'बालतप' कहते हैं। इत्यादि जो पास्रव हैं, वे देवायुष्यबन्ध के कारण हैं। तदुपरान्त-कल्याणमित्र का सम्पर्क, धर्मश्रवण, दान, शील, तप, भावना, शुभ लेश्यापरिणाम, अव्यक्त सामायिक तथा विराधित सम्यग्दर्शन इत्यादिक भी देव आयुष्य के प्रावव हैं ।। ६-२० ॥ * अशुभनामकर्मणः प्रानवाः * ॐ मूलसूत्रम्योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ॥ ६-२१॥ * सुबोधिका टीका * "मनस्यन्यद् वचस्यन्यद् कर्मण्यन्यद्धि पापिनाम्" मन-वचन-कायाभिः यस्य क्रिया एकत्वं नैव धारयति कथनेऽन्यत् मनसि अन्यत् कायभिरन्यत् कुटिलाः पापिनः भवन्ति । कायवाङ् मनोयोगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्न प्रास्रवो भवति ।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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