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________________ ६।२० ] षष्ठोऽध्यायः [ ३६ (२) उनकी पुष्टि के लिए तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत तथा क्रोध, लोभादि का त्याग शील कहलाता है। इससे विपरीत होना ही निःशीलवत है, और इन बन्ध हेतुओं की तीनों आयुषों में सामान्यता पाई जाती है । पूर्वोक्त तद्-तद् आयुष्य के तद्-तद् आस्रव तो हैं ही। तदुपरान्त शीलव्रत के परिणाम का प्रभाव भी इन तीन प्रकार की आयुष्य का प्रास्रव है। * प्रश्न-शीलव्रत के परिणाम का अभाव जैसे नरकादि आयुष्य का आस्रव है, वैसे देवगति के आयुष्य का भी आस्रव है। क्योंकि भोगभूमि में उत्पन्न हुए युगलिक जीव नियम से देवलोक में उत्पन्न होते हैं। उनके शीलव्रत के परिणाम का अभाव होता है। तो फिर यहाँ शीलव्रत के अभाव को तीन ही आयुष्य के आस्रव तरीके क्यों कहा? । उत्तर-इस सूत्र में 'सर्वेषां' पद है। उस पद से तीन आयुष्य लेते हुए यह विरोध प्राता है। इसलिए इस 'सर्वेषां' पद से चारों आयुष्य ग्रहण करने में आ जाय तो यह विरोध न रहे । परन्तु प्रस्तुत सूत्र के भाष्य में 'सर्वेषां' पद से 'नरक, तिर्यंच और मनुष्य' ये तीन आयुष्य ही ग्रहण किये गये हैं। खुद सूत्रकार ही स्वयं भाष्यकार पूर्वधर महर्षि है। 'तत्त्वं तु केवलिनो ज्ञेयः' । अर्थात्-तत्त्व तो केवली भगवन्त जाने ।। ६-१६ ।। * देवगतेरायुष्यस्य प्रास्रवाः * 卐 मूलसूत्रम्सरागसंयम-संयमासंयमा-ऽकामनिर्जरा बालतपांसि देवस्य ॥ ६-२० ॥ * सुबोधिका टीका * संयमविरतिव्रतशब्दाः पर्यायाः। अस्य लक्षणं हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव॑तम् । संयमासंयमौ देशविरतिर णुव्रतमित्यनर्थान्तरम् । देशसर्वतोऽणुमहती। इत्यपि वक्ष्यते। अकामनिर्जरा पराधीनतयानुरोधाच्चाकुशलनिवृत्तिराहारादिनिरोधश्च बालतपः । बालो मूढ इत्यनान्तरम्, तस्य तपो बालतपः । * श्रमण-श्रमणीवर्ग के पांच महाव्रत हैं। इन महाव्रतों के पालन के लिए अवश्य पिण्डविशुद्धि, गुप्ति, समिति तथा भावना इत्यादि शील हैं। श्रावक-श्राविका वर्ग के लिए पंच अणुव्रत हैं। उनके पालन के लिए भी अवश्य चार गुणव्रत, तीन शिक्षाव्रत, तथा अभिग्रह इत्यादि शील हैं। व्रतों का निरूपण इस तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के अ. ७ सू. १ में आयेगा। गुप्ति आदि का निरूपण अ.६ सू. २ से प्रारम्भ होगा। गुणवतों तथा शिक्षाव्रतों का वर्णन अ. ७ सू. १६ में आयेगा ।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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