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________________ ७० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र [ ५।३५ परमाणुओं के पारस्परिक बन्ध के समान एक जघन्य गुण परमाणु का अन्य-दूसरे अजघन्य गुण परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता। [२] भाष्यवृत्ति के अनुसार पैंतीसवें (३५) सूत्र के आदि पद द्वारा एक अवयव से अन्य-दूसरे अवयव का स्निग्ध, रूक्षत्व अंश तीन, चार यावत् संख्याता; असंख्याता, अनंता भी अधिक होता हो तो बन्ध हो सकता है। मात्र एक ही अंश अधिक होने से बन्ध निषेध है। किन्तु दिगम्बरीय आम्नायकी सभी व्याख्यानों में सिर्फ दो अंश अधिक हों, उसी का परस्पर बन्ध माना है । एक अंश के समान तीन, चार से यावत् संख्याता, असंख्याता, अनंता अंश अधिक वाले अवयवों के भी बन्ध का निषेध माना है।। [३] पैतीसवें सूत्र की भाष्यवृत्ति से दो, तीन इत्यादि अंश अधिक होने पर जो बन्ध विधान कहा हुआ है वह सदृश अवयवों के लिए है, किन्तु दिगम्बरीय व्याख्यानों में वह विधान सदृश, असदृश दोनों के लिए है। इस अर्थभेद के कारण दोनों परम्परागों में बन्धविषयक जो विधि-निषेध फलितार्थ होता है उसको कोष्ठक द्वारा बताते हैं । * कोष्ठक * (१) जघन्य X जघन्य..... असदृश | सदृश असदृश (२) जघन्य X एकाधिक.... (३) जघन्य x दो अधिक (४) जघन्य x तीन आदि अधिक..... (५) जघन्येतर समजघन्येतर..... (६) जघन्येतर - एकाधिक जघन्येतर.... (७) जघन्येतर x दो अधिक जघन्येतर.... | है। (८) जघन्येतर - तीन आदि जघन्येतर.... | नहीं the The te ho as the me te lehet me to the है to * सारांश-स्निग्धत्व और रूक्षत्व दोनों स्पर्श अपनी-अपनी जाति की अपेक्षा एक-एक रूप हैं। तथापि परिणाम की तारतम्यता के कारण वे अनेक प्रकार के हैं। जघन्य स्निग्धत्व और जघन्यरूक्षत्व तथा उत्कृष्ट स्निग्धत्व तथा उत्कृष्ट रूक्षत्व के बीच अनन्त अंशों का तारतम्य भाव रहा हुआ है । जैसे-गाय, बकरी भेड़ और ऊँटनी के दूध में स्निग्धत्व का न्यूनाधिकपना रहता है। स्निग्धत्व भाव सब में है, किन्तु वह न्यूनाधिक रूप से है। सबसे न्यून अविभाज्य रूप अंश को जघन्य कहते हैं। स्निग्धत्व तथा रूक्षत्व के परिणामों का अविभाज्य अंश जघन्य कहलाता है तथा शेष जघन्येतर कहलाते हैं। इसमें मध्यम और उत्कृष्ट संख्या का समावेश है। जघन्य से
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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