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________________ ५१३५ ] पञ्चमोऽध्यायः [ ६६ + विवेचनामृत सदृश पुद्गलों में गुणवैषम्य होते हुए भी उपरान्त द्विगुणादिक स्पर्श से अधिक हों तो परस्पर बन्ध होता है। अब पूर्व सूत्र में सदृश पुद्गलों में गुण साम्य जो हो तो बन्ध नहीं होता है, ऐसा कहा है। उसका अर्थ यह होता है कि-सदृश पुद्गलों में गुणवैषम्य हो तो बन्ध होता है । इस सूत्र से सदृश पुद्गलों में गुणवैषम्य हो तो भी बन्ध का निषेध करने में आया है। वह इस प्रमाणे सदृश पुद्गलों में मात्रएक गुण वैषम्य हो तो बन्ध नहीं होता है। जैसे--चतुर्गुणस्निग्धपुद्गल का पंचगुणस्निग्धपुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता। चतुर्गुणरूक्षपुद्गल का पंचगुण स्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता। चतुर्गुणरूक्षपुद्गल का पंचगुणरूक्षपुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता। कारण कि, यहाँ मात्र एकगुणवैषम्य है । ___इसलिए सदृश पुद्गलों में द्विगुण, त्रिगुण, चतुर्गुण इत्यादि गुणवैषम्य हो तो बन्ध होता है। जैसे कि चतुर्गुण स्निग्ध पुद्गल का षड्गुणस्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध होता है । यहाँ द्विगुण वैषम्य है। चतुर्गुणस्निग्ध पुद्गल का सप्तगुणस्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध होता है। यहाँ त्रिगुण वैषम्य है। इस तरह रूक्ष स्पर्श में भी समझना। "न जघन्यगुणानाम् ॥ ५-३३ ॥ गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ५-३४ ॥ द्वयधिकादिगुणानां तु ॥ ५-३५ ॥" उक्त तीन सूत्रों में श्री जैन श्वेताम्बरीय तथा दिगम्बरीय परम्परा के अनुसार पाठभेद तो नहीं है, किन्तु अर्थभेद है। खास करके उनमें मुख्य तीन बातें ध्यान में रखने योग्य हैं। वे नीचे प्रमाणे हैं * प्रश्न-[१] जघन्य गुणपरमाणु एक संख्या वाला हो, उसका बन्ध हो सकता है या नहीं? ___[२] 'द्वयधिकादिगुणानां तु' पैंतीसवें (३५) सूत्र के आदि शब्द से तीन आदि की संख्या लेनी या नहीं? __ [३] पैंतीसवें (३५) सूत्र से बन्ध-विधान केवल सदृश-सदृश अवयवों का मानना या नहीं? उत्तर-[१] भाष्यवृत्ति के अनुसार जघन्य गुण वाले परमाणुओं के बन्ध का निषेध है । एक परमाणु जघन्य गुण वाला हो और दूसरा जघन्य गुणवाला नहीं हो तो भाष्यवृत्ति के अनुसार बन्ध हो सकता है। परन्तु 'सर्वार्थसिद्धि' आदि दिगम्बरीय व्याख्या के अनुसार जघन्यगुरणयुक्त दो
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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