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________________ ५६ ] मूलसूत्रम् - श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * मनुष्यायुषस्य कालः नृस्थितिपरापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्त्त ॥ ३- १७॥ * सुबोधिका टीका नृ नरा मनुष्या मानुषा इति शब्दाः पर्यायवाचकाः सन्ति । मनुष्याणां परा स्थितिः त्रीणि पल्योपमानि अपरा अन्तर्मुहूर्तेति । मनुष्यायु-गतिनामकर्मोदयः मनुष्यः । येन मानुषायुकर्मणा पर्यायं प्राप्यते, तस्य प्रमाणं श्रन्तर्मुहूर्तात् त्रीणि पल्योपमानि । संसारिणः नारक-तिर्यञ्च मनुष्य- देवेषु चतुर्षु विभक्ताः ।। ३-१७ ।। [ ३।१८ * सूत्रार्थ - मनुष्यों का उत्कृष्ट प्रायुष्य तीन पल्योपम का और जघन्य आयुष्य अन्तर्मुहूर्त का है ।। ३-१७ ।। विवेचनामृत 5 मनुष्यों की परस्थिति और अपरस्थिति क्रमशः तीन पल्योपम की और अन्तर्मुहूर्त्त की है। पर यानी उत्कृष्ट- अधिक में अधिक, तथा अपर यानी जघन्य- कम से कम । मनुष्यों का उत्कृष्ट आयुष्य तीन पल्योपम तथा जघन्य प्रायुष्य अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण का होता है । 5 मूलसूत्रम् अर्थात् - कोई भी मनुष्य अन्तर्मुहूर्त्त से पहले मर नहीं सकता, तथा तीन पल्योपम से अधिक जीवित नहीं रह सकता है । यह कथन गर्भज मनुष्यों की अपेक्षा जानना, किन्तु संमूच्छिम मनुष्यों का श्रायुष्य जघन्य से और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण का ही समझना । (३-१७) * तियंचायुषस्य कालः तिर्यग्योनीनां च ॥ ३-१८॥ * सुबोधिका टीका तिर्यग्योनीनां जीवानां उत्कृष्ट - जघन्य स्थिति अनुक्रमतः त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते भवतो यथासंख्यमेव । पृथक्करणं यथासंख्य दोषनिवृत्त्यर्थम् । इतरथा इदमेकमेव
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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