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________________ तृतीयोऽध्यायः [ ५५ जाति-योनिपूर्ण संकटमय जीवन विद्यते प्राणीनाम् । अस्यान्तश्च सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्रस्वरूपमोक्षमार्गेणैव भवति । ३।१६ ] मोक्षस्य ज्ञातारः प्रदर्शक श्चोपदेष्टाः तीर्थङ्कराः, एतासु पञ्चदशकर्मभूमिषु एव उत्पद्यन्ते । चारित्र्याभावेन देवकुरूत्तरकुरुभूमी अकर्मभूमि ।। ३-१६ ।। * सूत्रार्थ - उपर्युक्त मनुष्यक्षेत्र में पाँच भरत, पाँच ऐरावत तथा पाँच विदेह ये पन्द्रह कर्मभूमियाँ हैं । शेष देवकुरु और उत्तरकुरु इत्यादि कर्मभूमियाँ हैं ।। ३-१६ ।। विवेचनामृत पाँच मेरुपर्वतों से अधिष्ठित तथा पैंतालीस लाख योजन प्रमाण (ऐसे) लम्बे-चौड़े मनुष्य क्षेत्र में पाँच भरतक्षेत्र, पाँच ऐरावतक्षेत्र और पाँच ही महाविदेह क्षेत्र हैं । ये सब मिलकर पन्द्रह कर्मभूमियाँ कहलाती हैं । विदेह में देवकुरु तथा उत्तरकुरु का विभाग भी सम्मिलित है। ऐसा होते हुए भी देवकुरु और उत्तरकुरु का विभाग कर्मभूमि नहीं, किन्तु भोगभूमि है। क्योंकि, वहाँ पर चारित्र का पालन नहीं होता है। सारांश यह है कि - उत्तरकुरु तथा देवकुरु क्षेत्र को छोड़कर पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेह को कर्मभूमि कहते हैं । शेष बीसक्षेत्र तथा छप्पन अन्तरद्वीप कर्मभूमि हैं । देवकुरु, उत्तरकुरु तथा महाविदेह के सम्मिलित होते हुए भी वह अकर्मकभूमि है । जहाँ पर युगलियों का निवास और युगलिक धर्म-व्यवहार हो, उसे अकर्मक भूमि कहते हैं । वहाँ पर चारित्रादिक धर्मं कभी संभावित नहीं होता है। कर्मभूमि तो कर्म के विध्वंस विनाश के लिए है । अर्थात् जिस भूमि में कर्म का क्षय विनाश करके मोक्ष- सिद्धि प्राप्त हो सके, वही कर्मभूमि है । ऐसी कर्मभूमि में ही मोक्षमार्ग के ज्ञाता तथा सद्धर्म के उपदेशक तीर्थंकर भगवन्तादिक उत्पन्न होते हैं । अकर्मकभूमि में कभी नहीं होते । * मनुष्य के १०१ क्षेत्रों का निर्देश - लघुहिमवन्त पर्वत के छेड़े से ईशान इत्यादि चार विदिशाओं में लवणसमुद्र की तरफ चार दाढ़ा आई हुई हैं । प्रत्येक दाढ़ा के ऊपर सात-सात द्वीप हैं। कुल मिलाकर अट्ठाईस द्वीप होते हैं । इसी तरह शिखरी पर्वत की चार दाढ़ाओं में कुल अट्ठाईस द्वीप हैं । ये द्वीप लवणसमुद्र में होने से अन्तद्वीप कहे जाते हैं । सब मिलाकर छप्पन (५६) अन्तर्वीप हैं । तथा महाविदेह क्षेत्र में मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में देवकुरु क्षेत्र तथा मेरुपर्वत की उत्तर दिशा में उत्तरकुरु क्षेत्र प्राये हैं । छप्पन अन्तद्वप, पाँच देवकुरु, पाँच उत्तरकुरु, पाँच भरत, पाँच महाविदेह, पांच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यक, तथा पाँच ऐरावत क्षेत्र हैं। ये सब मिलकर १०१ क्षेत्र मनुष्य के हैं। शेष समस्त क्षेत्र अकर्मकभूमि के हैं । ( ३- १६ )
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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