SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र [ ३१२ * धातकीखण्डस्तथा पुष्करार्द्धद्वीपः * 卐 मूलसूत्रम् द्विर्धातकीखण्डे ॥३-१२ ॥ * सुबोधिका टीका * जम्बूद्वीपे यत् मेरुपर्वतादीनां वर्णनं कृतं तस्माद् द्विगुणा धातकीखण्डे द्वाभ्यामिष्वाकारपर्वताभ्यां दक्षिणोत्तरायताभ्यां विभक्ताः सन्ति । एभिः निमित्तैः धातकीखण्डस्य द्वौ विभागौ जायेते। तौ च पूर्वार्द्ध-पश्चिमाद्धौं । पूर्वार्धे परार्धे च चकार संस्थिता निषधसमोच्छायाः कालोद-लवणजलस्पशिनो वंशधरा: सेष्वाकाराः । अनेनैव हेतुना धातकीखण्डस्य द्वौ विभागौ पूर्वार्द्ध-परार्द्धनामभ्याम् । द्वयोः खण्डयोः भरतक्षेत्ररचना वत्तते। अतः जम्बूद्वीपापेक्षया भरतक्षेत्रप्रमाणं द्विगुणितम् । धातकीखण्डस्याकृति शकटीरथवच्चाभवत् । यस्यां अरस्थाने पर्वताः तथा चारमध्यवर्तीछिद्रस्थानेषु क्षेत्राणि । अत्र च वर्षधरपर्वताः चतःशत (४००) योजनप्रमाणानि । यादृशी रचना च धातकीखण्डे तादृश्यैव पुष्करार्धेऽपि वर्तते ।। ३-१२ ।। * सूत्रार्थ-उक्त क्षेत्र तथा पर्वतादिक जम्बूद्वीप से दुगुने धातकीखण्ड में हैं । अर्थात्-जम्बूद्वीप के पर्वतों और क्षेत्रों से धातकीखण्ड के पर्वत तथा क्षेत्र द्विगुण संख्या वाले हैं ।। ३-१२ ॥ ॐ विवेचनामृत ॥ जम्बूद्वीप को घेरे हुए लवणसमुद्र है तथा लवरणसमुद्र को घेरे हुए धातकीखण्ड है। यह दूसरा द्वीप कहा जाता है, इसका विष्कम्भ चार लाख योजन का है। जैसे-जम्बू वृक्ष के निमित्त से पहले द्वीप की जम्बूद्वीप संज्ञा है, वैसे धातकी वृक्ष के निमित्त से इस द्वीप की भी धातकीखण्ड संज्ञा है। यहाँ पर भरताधिक क्षेत्रों की, हिमवन्तादिक पर्वतों की तथा समुद्रादिक की संख्या जम्बूद्वीप से दुगुनी है। जम्बूद्वीप की अपेक्षा धातकीखण्ड में मेरुपर्वत और वर्षधर दुगुने हैं। जम्बूद्वीप में एक भरत है, तो यहाँ पर दो हैं, इत्यादि सर्वक्षेत्र और पर्वतादिक दुगुने जानने चाहिए। अर्थात् दो मेरु, चौदह वर्षक्षेत्र तथा बारह वर्षधर पर्वत समान नामवाले हैं। जो नाम जम्बूद्वीप के पर्वत-क्षेत्रों के हैं, वे ही नाम यहाँ धातकीखण्ड के पर्वत-क्षेत्रों के हैं। वलयाकृत धातकीखण्ड के पूर्वार्द्ध और पश्चिमाद्ध इस तरह दो विभाग हैं। इनमें प्रत्येक विभाग में एक-एक मेरु, सात-सात वर्षक्षेत्र तथा छह-छह वर्षधर पर्वत हैं। उक्त दोनों विभागों के
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy