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________________ ३।११ तृतीयोऽध्यायः [ ४५ शेष पर्वत तथा क्षेत्र : महाविदेहक्षेत्र के पश्चाद् उत्तरदिशा में क्रमशः नीलवन्त पर्वत, रम्यकक्षेत्र, रुक्मि पर्वत, हैरण्यवतक्षेत्र, शिखरी पर्वत तथा ऐरावत क्षेत्र हैं। उन सबका वर्णन क्रमश: निषध पर्वत, हरिवर्ष क्षेत्र, महाहिमवन्त पर्वत, हैमवत क्षेत्र, लघु हिमवन्त पर्वत तथा भरतक्षेत्र के सदृश जानना। किन्तु द्रहों इत्यादिक के नामों में परिवर्तन समझना । 卐 विशेष जम्बूद्वीप में भरतादिक मुख्य सात क्षेत्र हैं। इन सातों क्षेत्रों को पृथक् करने के लिए छह पर्वत हैं। वे वर्षधर कहलाते हैं। इनकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर है। भरतक्षेत्र और हैमवतक्षेत्र के मध्यवर्ती हिमवान पर्वत है, हैमवतक्षेत्र और हरिवर्षक्षेत्र के मध्यवर्ती महाहिमवान पर्वत है, हरिवर्षक्षेत्र और विदेहक्षेत्र के मध्यवर्ती निषध पर्वत है, विदेहक्षेत्र और रम्यकक्षेत्र के मध्यवर्ती नीलपर्वत है, रम्यकक्षेत्र और हिरण्यवतक्षेत्र के मध्यवर्ती रुक्मि पर्वत है, तथा हिरण्यवतक्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के मध्यवर्ती शिखरी पर्वत है। इन पर्वतों से सात क्षेत्र विभाजित माने गये हैं। इसलिए ये पर्वत उन क्षेत्रों के मध्यवर्ती हैं। ऊपर विदेहक्षेत्र के मध्य में स्थित मेरुपर्वत का संक्षिप्त वर्णन किया है। इसी तरह जम्बूद्वीप के समान धातकीखण्ड तथा पुष्करार्धद्वीप के मध्य में भी मेरुपर्वत है। परन्तु जम्बूद्वीप से धातकीखण्ड तथा पुष्करार्धद्वीप का प्रमाण दूना है। अतएव इन दोनों द्वीपों में विदेहक्षेत्र भी दो-दो हैं। इसलिए इन चार विदेहक्षेत्रों के मेरुपर्वत भी चार हैं। इन चारों मेरुपर्वतों का प्रमाण जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के तुल्य नहीं है, किन्तु न्यून-कम है। धातकीखण्ड में दो तथा पुष्करार्ध में दो इस तरह ये चारों मेरु क्षद्रमेरु कहे जाते हैं। कारण कि इनका प्रमाण महामेरु-जम्बूद्वीप के मध्यवर्ती सुदर्शनमेरुपर्वत से न्यून-कम होते हुए भी इन चारों मेरुओं का प्रमाण परस्पर में समान ही है। इनकी ऊँचाई चौरासी हजार (८४०००) योजन की है। पृथ्वीतल का इनका विष्कम्भ १४०० योजन है। चारों क्षुद्र मेरुपर्वतों के पृथ्वी के भीतर का अवगाह महामेरुपर्वत के समान एक हजार योजन है। वह पहला काण्डक है। दूसरा काण्डक ५६ हजार योज न का है। तीसरा काण्डक २८ हजार योजन का है। भद्रशालवन और नन्दनवन महामेरुपर्वत के समान हैं। इन चारों क्षुद्रमेरुपर्वतों के नीचे के विभागों में चारों तरफ पृथ्वी के ऊपर महामेरुपर्वत के समान भद्रशालवन है। उससे साढ़े छप्पन हजार योजन ऊपर चलकर सौमनसवन पाता है। उससे २८००० हजार योजन के ऊपर चलकर पाण्डुकवन आता है। सौमनसवन का विस्तार ५०० योजन का है तथा पाण्डुकवन का विस्तार ४६४ योजन का है । इसके अलावा ऊपर का, नीचे का तथा चूलिका का प्रमाण महामेरुपर्वत के समान ही समझना ॥ (३-११)
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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