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________________ ३६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३११ भरत तथा ऐरावत ये दो क्षेत्र, हैमवत तथा हैरण्यवत ये दो क्षेत्र एवं हरिवर्ष और रम्यक ये दो क्षेत्र प्रमाण इत्यादिक से तुल्य-समान हैं। जम्बूद्वीप के अति मध्य भाग में ही महाविदेह क्षेत्र आया हुआ है। मेरुपर्वत का व्यवहार सिद्ध दिशा की अपेक्षा से समस्त क्षेत्रों के उत्तर में है। क्योंकि- व्यवहार से जिस दिशा में सूर्य का उदय होता है वह पूर्व दिशा है, तथा जिस दिशा में सूर्य का अस्त होता है वह पश्चिम दिशा है । पूर्व दिशा सम्मुख मुह कर खड़ा रहने से बायीं तरफ की दिशा उत्तर होती है, तथा दाहिनी तरफ की दिशा दक्षिरण होती है। भरतक्षेत्र में जिस दिशा में सूर्योदय होता है, वहाँ से विपरीत दिशा में ऐरावत क्षेत्र में सूर्योदय होता है। इस तरह दोनों क्षेत्रों में पूर्व दिशा की तरफ मुह करते हुए मेरुपर्वत बायीं तरफ रहता है। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी समझना चाहिए ।। (३-१०) * जम्बूद्वीपे प्रागताः वर्षधरपर्वताः * ॐ सूत्रम्तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्-महाहिमवन्-निषध-नील-रुक्मि शिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥ ३-११॥ * सुबोधिका टीका * एतेषां भरतादिसप्तक्षेत्राणां विभक्तारः षट् वर्षधराः पर्वताः । ते चैते हिमवान् महाहिमवान् निषधो नीलो रुक्मी शिखरीति । तत्र च भरतस्य हैमवतस्य च विभत्ता हिमवान्, हैमवतस्य हरिवर्षस्य च विभक्ता महाहिमवान्, इत्येवं शेषाः । षट्कुलाचलै: विभक्ताश्चैते क्षेत्राः एतेषु प्रमाणेषु विस्तृताः। तत्र पञ्चयोजनशतानि षड्विंशानि षट्चैकोनविंशतिभागाः (५२६६१) भरतविष्कम्भः स च द्विििहमवद् हैमवतादीनां आविदेहेभ्यः । परतो विदेहेभ्यः अर्धार्धहीनाः । स्पष्टतस्तु कुलाचलः विभक्ताश्चैतेऽनुक्रमतः भरतक्षेत्रस्य प्रमाणः ५२६ योजनप्रमाणभरतक्षेत्रविष्कम्भः । ततोऽग्रतः हिमवान् हैमवतः द्विगुणः द्विगुणः द्विगुणता च विदेहपर्यन्तमेव नवाग्रे। विदेहेभ्यो परतः विष्कम्भः अर्धार्धहीनश्च अर्थात्-भरतक्षेत्रस्य प्रमाणं ५२६, हिमवान्-शिखरीपर्वतयोः प्रमाण १०५२१३ योजनानि, हैमवत-हैरण्यवतपर्वतयोः प्रमाणं २१०५५. योजनानि, महाहिमवान्-रुक्मिपर्वतयोः ४२१०१९ योजनानि, हरिरम्यकपर्वतयोः प्रमाणं ८४२११ योजनानि, निषध-नीलवन्तपर्वतयोः प्रमाणं १६८४२
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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