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________________ ३।१० ] तृतीयोऽध्यायः [ ३५ * जम्बूद्वीपे पागतानि क्षेत्राणि * 卐 सूत्रम्तत्र भरत-हैमवत-हरिविदेह-रम्यक-हैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ॥ ३-१०॥ * सुबोधिका टीका * तस्मिन्नेव जम्बूद्वीपे भरत-हैमवत-हरयो विदेहाश्च रम्यक हैरण्यवतमिति सप्तवंशाः क्षेत्राणि सन्ति। भरतस्योत्तरदेशे हैमवतकं क्षेत्रम्, हैमवतस्योत्तरतः हरिक्षेत्रम् । इत्थमेवान्येषु अपि सम्भाव्यम्, ज्ञातव्यमिति । अर्थात्-हरितोत्तरतः विदेहः विदेहोत्तरतः रम्यकं रम्यकस्योत्तरतः हैरण्यवतः ततोत्तरतः ऐरावतक्षेत्रमस्ति । वंशा वर्षा वास्या इति चैषां पर्यायाणि गुणतः जायन्ते। सर्वेषामेषां व्यवहारनयापेक्षादादित्यकृताद् दिनियमादुत्तरतो मेरुः वर्तते, लोकमध्यावस्थितं चाष्टप्रदेशं रुचकं दिग्नियमहेतु प्रतीत्य यथासम्भवं भवतीति । गुणतः पर्यायाणि कथम् ? गुणतो पर्यायाणि अन्वर्थगुणपेक्षया वर्त्तते यत् भरतादिकारापि वंशादिकैरिव विभक्तारः धारका वा। अतः वंशक्षेत्राः, इत्थमेव वर्षवास्यार्थाः यत् वर्षस्य सन्निधानत्वेन वर्ष मनुष्यादिकानां वासेन वास्याः। दिनियमोऽपि सूर्यकृताद् नियमाद् भवति । यथा मेरु सर्वाशाभिः उत्तरस्यामेव वर्तते यत् लोके व्यवहारनयापेक्षया एवैतद् ।। ३-१० ॥ __ सूत्रार्थ-उस जम्बूद्वीप में भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात मनुष्यादिकों के वासक्षेत्र हैं ।। ३-१० ।। फ़ विवेचनामृत ॥ _ जिस जम्बूद्वीप का प्रमाण और प्राकार ऊपर के सूत्र में बताया हुआ है, उस जम्बूद्वीप में ही भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये मुख्य सात क्षेत्र हैं। उनको वंश, वर्ष या वासक्षेत्र कहते हैं। इनमें भरतक्षेत्र दक्षिण दिशा में आया है। जम्बूद्वीप के दक्षिण भाग में (१) भरतक्षेत्र, भरत क्षेत्र से उत्तर (२) हैमवतक्षेत्र, हैमवत क्षेत्र से उत्तर (३) हरिवर्षक्षेत्र, हरिवर्ष क्षेत्र से उत्तर (४) विदेह यानी महाविदेहक्षेत्र, महाविदेह क्षेत्र से उत्तर (५) रम्यकक्षेत्र, रम्यक क्षेत्र से उत्तर (६) हैरण्यवतक्षेत्र, तथा हैरण्यवत क्षेत्र से उत्तर (७) ऐरावतक्षेत्र हैं। इस तरह ये क्षेत्र एक-एक से उत्तर दिशा में हैं। अर्थात् सारांश यह है कि-भरतक्षेत्र से उत्तर में ही हैमवत इत्यादि छह क्षेत्र क्रमशः आये हुए हैं। इनमें
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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