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________________ ३६ ] तृतीयोऽध्यायः वेदिका के दोनों तरफ दो बगीचे हैं। प्रत्येक बगीचे का घेराव जगती-कोट जितना, तथा विस्तार ढाई सौ धनुष दो योजन का है। वेदिका का और दोनों बगीचों का विस्तार सम्मिलित करते हुए बराबर जगती-कोट जितना चार योजन होता है। दोनों बगीचों में फल और फूल इत्यादिक से मनोहर वृक्ष हैं। उनकी भूमि में रहे हुए तृण-घास के अंकुरों में से चन्दनादिक से भी अधिक सुवास प्रसरती है। तथा इन अंकुरों का पवन-वायु से परस्पर अथड़ाते हुए वीणादिक वाजिन्त्रों के नाद से भी अधिक मनोहर नाद होता है। पवन से परस्पर अथड़ाते हुए ऐसे पंचवर्ण के सुगन्धित मणियों में से भी मधुर ध्वनि निकलती है। स्थल-स्थल पर सोपान यानी सीढ़ियों वाली बावड़ियाँ, तालाब तथा महासरोवर इत्यादि होते हैं। बावड़ियों में जल-पानी भी मदिरा तथा इक्षुरसादिक विविध स्वाद वाले होते हैं। उनमें अनेक प्रकार के क्रीड़ापर्वत, विविध प्रकार के क्रीड़ागृह, नाट्यगृह, केतकीगृह, लतागृह, कदलीगृह, प्रसाधनगृह तथा रत्नमय मण्डप इत्यादिक हैं। ___ इन समस्त गिरियों-पर्वतों, गृहों, जलाशयों तथा मण्डपों इत्यादि में व्यन्तर जाति के देव यथेच्छ क्रीड़ा करते हैं। चार दिशाओं में जगती-कोट के विजयादिक नाम वाले चार द्वार हैं। उनके स्वामी विजय आदि देव हैं। उन विजयादि देवों की असंख्य द्वीपों और समुद्रों के बाद द्वितीय जम्बूद्वीप में राजधानी है। __ कोट के फिरता हुआ एक गवाक्ष यानी झरोखा है। वह गवाक्ष दो गाउ ऊँचा और पाँच सौ धनुष पहोला है। गवाक्ष कोट के मध्य भाग में आया हुअा होने से, वहाँ से ही लवण समुद्र के समस्त दृश्य देख सकते हैं। मेरु पर्वत की तीनों लोकों में स्पर्शना जम्बूद्वीप के मध्य भाग में रहा हुआ मेरुपर्वत भी सुवर्ण के थाल के मध्य की माफिक गोल है । वह मेरुपर्वत तीन लोक में आया हा है। इसकी ऊँचाई एक लाख योजन की है। ऊँचाई वाले दूसरे पर्वत कोई नहीं हैं। एक लाख योजन की ऊँचाई में यह एक हजार योजन पृथ्वी में रहा हुअा है, तथा शेष ६६ हजार योजन पृथ्वी के ऊपर है। एक लाख योजन में से १०० योजन अधोलोक में, १८०० योजन तिर्छालोक में और ६८१०० योजन ऊर्ध्वलोक में है। समभूतला पृथ्वी से ६०० योजन नीचे और ६०० योजन ऊपर, इस तरह १८०० योजन तिर्छालोक में है। मेरुपर्वत समभूतला पृथ्वी से १००० योजन नीचे जमीन में होने से अधोलोक में १०० योजन होते हैं। तथा नीचे के शेष रहे हुए ६०० योजन तिर्छालोक में गिने जाते हैं। ऊपर के ६०० योजन उमेरते हुए १८०० योजन तिर्छालोक में होते हैं। ऊपर के शेष यानी बाकी के ६८१०० योजन ऊर्ध्वलोक में होते हैं। - - - मेरुपर्वत के तीन काण्डक ___ मेरुपर्वत पर दृश्य भाग में तीन काण्डक-मेखला-कटनी हैं। अर्थात् तीन काण्डक यानी विभाग हैं। यह मेरुपर्वत मानों तीनों लोकों [स्वर्ग-मृत्यु-पाताल] का विभाग करने के लिए माप करने की महान् प्राकृति है अर्थात् मापदण्डरूप है। क्योंकि मेरु के नीचे के भाग में अधोलोक है और ऊपर के भाग में ऊर्ध्वलोक है, तथा मेरु के बराबर तिर्यग्लोक-ति लोक मध्यलोक का प्रमाण है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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