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________________ ३२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३६ विशेषत्वं यत् सप्तसु क्षेत्रेषु विभक्तमयमस्ति जम्बूद्वीपस्य सप्त विभागाः। ते चैते ॥ ३-६ ॥ * सूत्रार्थ-उन द्वीप-समुद्रों के मध्यभाग में एक लाख योजन के विस्तार वाला जम्बूद्वीप है, जिसमें नाभि के समान वृत्ताकार यानी गोलाकार मेरुपर्वत है ।। ३-६ ॥ + विवेचनामृत मध्यलोक की आकृति झालर के समान कही गयी है। इसमें असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। वे द्वीप के पश्चात् समुद्र और समुद्र के पश्चात् द्वीप, इस क्रम से सुव्यवस्थित हैं। उनकी व्यास रचना और आकार-प्राकृति का वर्णन करते हुए मध्यलोक का आकार प्रदर्शित करते हैं। व्यास-पहला द्वीप जम्बूद्वीप है। उसका विष्कम्भ यानी विस्तार पूर्व, पश्चिम और उत्तर, दक्षिण एक लाख योजन का है। लवण समुद्र का विस्तार दो लाख योजन का है। धातकी खंड का विस्तार चार लाख योजन का है। कालोदधि समुद्र का विस्तार आठ लाख योजन का है। पुष्करवर द्वीप का विस्तार सोलह लाख योजन का है। पुष्करोदधि समुद्र का विस्तार बत्तीस लाख योजन का है। इसी तरह आगे-आगे के जितने द्वीप और समुद्र हैं वे एक दूसरे से दुगुने-दुगुने विस्तार वाले हैं। समस्त द्वीप-समुद्रों के अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र है। वह भी असंख्यात याजन प्रमाण विस्तार वाला है। उसके परे पूर्वोक्त तीन वलय तथा अलोकाकाश है। समस्त द्वीपों और समुद्रों से वेष्टित मध्यवर्ती द्वीप को जम्बूद्वीप कहते हैं। वह थाली के समान एक लाख योजन के विस्तार वाला पहला द्वीप है। इस जम्बद्वीप के मध्य : मेरुपर्वत है जैसे नाभि शरीर के मध्य भाग में है, वैसे ही मेरुपर्वत भी जम्बूद्वीप के मध्य भाग में है। इसे जम्बूद्वीप के नाभिरूप होने से सूत्र में जम्बूद्वीप का 'मेरुनाभि' विशेषण दिया गया है। जम्बूद्वीप की जगती आदि का संक्षिप्त वर्णन एक लाख योजन विस्तार वाले जम्बूद्वीप का आकार प्रतरवृत्त अर्थात्-थाली के समान है। किन्तु लवण समुद्र के समान वलयाकार नहीं है, कुम्हार के चाक के समान ही है । जम्बूद्वीप के चारों तरफ 'वज्रमणिमय' नामक कोट है। उसी को शास्त्र में जगती कहते हैं। उसकी ऊंचाई आठ योजन की है । तथा उसका विस्तार मूल में बारह योजन का और पीछे क्रमशः न्यून-न्यून होते हुए ऊपर चार योजन का होता है। ऊपर के मध्य भाग में सर्वरत्नमय नामक वेदिका है। वह पुरुष, किन्नर, गन्धर्व, वषभ, सर्प, अश्व तथा हस्ति इत्यादि चित्रों है। उसमें गुच्छों, पुष्पों और पल्लवों से उत्तम वासन्ती तथा चम्पक इत्यादि विविध प्रकार की रत्नमय लताएँ हैं। वेदिका का घेराव जगती-कोट जितना, ऊँचाई दो गाउं की और विस्तार पाँच सौ धनुष्य का है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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