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________________ ३७ ] तृतीयोऽध्यायः [ २६ ज्ञेया। एषु प्रथमद्वीपो जम्बूद्वीपः अन्तिमश्च स्वयम्भूरमणः । एते सर्वे रत्नप्रभापृथिव्योपरि अवस्थितः समवायैष च तिर्यग्लोक (ति लोक) वा मध्यलोकेति ज्ञायते ।। ३-७ ।। * सूत्रार्थ-शुभ नाम वाले जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवणसमुद्र आदि समुद्र असंख्यात हैं ।। ३-७ ॥ ॐ विवेचनामृत यहाँ तक अधोलोक के संक्षिप्त वर्णन का दिग्दर्शन किया। अब यहाँ से मध्यलोक का वर्णन प्रारम्भ होता है। मध्यलोक की आकृति झालर के समान कही गई है। इसमें असंख्यात द्वीप तथा असंख्यात समुद्र हैं। वे द्वीप के पश्चात समुद्र और समुद्र के पश्चात् द्वीप इस क्रम से अवस्थित हैं। उन सब के नाम शुभ ही हैं। विश्व में शुभ पदार्थों के जितने नाम हैं, उन प्रत्येक नाम के द्वीप और समुद्र हैं। अशुभ नाम वाले एक भी द्वीप या एक भी समुद्र नहीं हैं। असंख्यात के असंख्यात भेद हो सकते हैं। अतः उनमें से कितने असंख्यात प्रमाण द्वीप और समुद्र समझने चाहिए ? कहा है कि, ढाई सागर के जितने समय हों, उतने ही कुल द्वीप और समूद्र जानने चाहिए। इनमें सबसे पहला द्वीप जम्बूद्वीप है और सबसे अन्तिम स्वयम्भूरमरणसर है। ये सब रत्नप्रभा भूमि पर अवस्थित हैं। इन्हीं के समूह को तिर्यग्लोक-ति_लोक या मध्यलोक कहते हैं। . इस मध्यलोक में प्रथम एक द्वीप, बाद में समुद्र। पश्चात् पुनः द्वीप, बाद में पुनः समुद्र। इस तरह क्रमशः असंख्य द्वीप और असंख्य समुद्र रहे हैं । प्रारम्भ के कुछ द्वीप-समुद्रों के नाम क्रमश: नीचे प्रमाण हैं- [१] जम्बूद्वीप, [२] लवण समुद्र, [३] धातकीखण्ड, [४] कालोदधि समुद्र, [५] पुष्करवर द्वीप, [६] पुष्करवर समुद्र, [७] वारुणीवर द्वीप, [८] वारुणीवर समुद्र, [६] क्षीरवर द्वीप, [१०] क्षीरवर समुद्र, [११] घृतवर द्वीप, [१२] घृतवर समुद्र, [१३] इक्षुवर द्वीप, [१४] इक्षुवर समुद्र, [१५] नन्दीश्वर द्वीप, [१६] नन्दीश्वर समुद्र। सबसे अन्तिम समुद्र का नाम स्वयम्भूरमण समुद्र है। उपयुक्त समुद्र के जल-पानी के सम्बन्ध में कहा है कि* लवरण समुद्र का जल-पानी खारा है। * कालोदधि समुद्र का जल-पानी स्वाभाविक जैसा है। * पुष्करवर समुद्र का जल-पानी भी स्वाभाविक जैसा है। * वारुणीवर समुद्र का जल-पानी मदिरा-दारु जैसा है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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