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________________ २८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३७ इनका अभाव है। इसलिए वहाँ केवल नारकी और सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव ही पाये जाते हैं। इस सामान्य नियम का भी अपवाद है, जिसका निर्देश विशेष रूप में ऊपर में आ गया है। सारांश यह है कि-देवों का उपपात-जन्म पहली रत्नप्रभा नरक भूमि में ही होता है, अन्य भूमियों में नहीं। इसलिए उपपात की अपेक्षा से देव पहली भूमि में ही रहते हैं और भूमियों में नहीं रहते हैं। देव भी केवल तीन भूमियों तक ही जा पाते हैं। नरकपाल कहे जाने वाले परमाधामी देव जन्म से ही पहली तीन भूमियों में रहते हैं, अन्य देव जन्म से केवल पहली रत्नप्रभा भूमि-पृथ्वी में पाये जाते हैं। द्वीप, समुद्र आदि का जो निषेध है, सो भी दूसरी आदि भूमियों के विषय में ही जानना, न कि पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में। क्योंकि पहली नरक भूमि में इन सब का सन्निवेश पाया जाता है। सामान्य नियम के अनुसार कोई भी मनुष्य नरक भूमियों में नहीं जा सकता तथा न पाया जा सकता है। किन्तु समुद्घात की अवस्था में मनुष्य का अस्तित्व वहाँ पर कहा जा सकता है। इसी तरह नारकी और वैक्रियलब्धि से सहित जीव तथा पूर्वजन्म के स्नेही मित्र आदि एवं परमाधामी असुरकुमार इतने जीव क्वचित् कदाचित् नरक की भूमियों में सम्भव हैं। परमाधामीदेवों को नरकपाल भी कहते हैं। उनका तीसरी नरक पर्यन्त आना-जाना होता है, तथा व्यन्तर और वाणव्यन्तर देव पहली नरकभूमि में ही होते हैं ।। ३-६ ॥ * मध्यलोकवर्णनम् * 9 सूत्रम्जम्बूद्वीपे-लवरणादयः शुभनामानो द्वीप-समुद्राः ॥ ३-७ ॥ * सुबोधिका टीका * जम्बूद्वीपादयो द्वीपा लवणादयश्च समुद्राः तिर्यग् (तिर्छा) लोकेऽसंख्याताः । एते शुभनामानः । द्वीपादनन्तरः समुद्रः समुद्रानन्तरो द्वीपो यथासंख्यं वर्तन्ते । तद्यथाजम्बूद्वीपो द्वीपः, लवणोदः समुद्रः, धातकीखण्डो द्वीपः, कालोदः समुद्रः, पुष्करवरो द्वीपः, पुष्करोदः समुद्रः, वरुणवरो द्वीपः, वरुणोदः समुद्रः, क्षीरवरो द्वीपः, क्षीरोदः समुद्रः, घृतवरो द्वीपः, घृतोदः समुद्रः, इक्षुवरो द्वीपः, इक्षुवरोदः समुद्रः, नन्दीश्वरो द्वीपः, नन्दीश्वरोदः समुद्रः, अरुणवरो द्वीपः, अरुणवरोदः समुद्रः, इत्येवमसंख्येयाः द्वीप-समुद्राः स्वयम्भूरमणपर्यन्ताः वेदितव्या इति । असंख्यातस्यासंख्याताः भेदाः अपि संभाव्या। अथात्र कति असंख्यातप्रमाणद्वीपसमुद्राणाम् ? अतः सार्धद्वयसागरस्य समयानुसारमेव कुलद्वीपसमुद्राणां स्थितिः
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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