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________________ ३।६ ] तृतीयोऽध्यायः [ २५ [५] पाँचवीं धूमप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति सत्रह सागरोपम है। _ [६] छठी तमःप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम है। [७] सातवीं महातमःप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के प्रायुष्य की उत्कृष्ट स्थिति तैतीस सागरोपम है। यहाँ नरकों में उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रायष्य की उत्कृष्ट स्थिति कही गई है। किन्त उक्त नरकों में उत्पन्न होने की योग्यता वाले जीव कौन-कौन से हैं? तथा किस-किस नरक तक जा सकते हैं ? यह कहना भी आवश्यक है । यहाँ अधोलोक के सामान्य वर्णन का दिग्दर्शन करवाया। इसमें दो बातें विशेष ज्ञातव्य हैं-गति-प्रागति और द्वीप-समुद्र आदि की सम्भावना । (१) गति-वर्तमान आयुष्य को परिपूर्ण करके जिस गति में उत्पन्न हो सकते हैं, उसे गति कहते हैं। * असंजी पर्याप्त तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय जीव पहली रत्नप्रभा नरकभूमि में ही उत्पन्न हो सकते हैं। * गर्भज भुजपरिसर्प पहली और दूसरी नरक भूमि तक उत्पन्न हो सकते हैं। * पक्षी तीसरी नरकभूमि पर्यन्त उत्पन्न हो सकते हैं । * सिंह चौथी नरकभूमि पर्यन्त उत्पन्न हो सकता है। * सर्प पांचवीं नरकभूमि पर्यन्त उत्पन्न हो सकता है । * स्त्री छठी नरकभूमि तक उत्पन्न हो सकती है। * मनुष्य और मत्स्य सातवीं नरकभूमि पर्यन्त उत्पन्न हो सकते हैं। ___ यहाँ विशेष यह है कि--मनुष्य और तिर्यंच मर कर नारकी में उत्पन्न हो सकते हैं, किन्तु देव और नारक मर कर सीधे नारकी में उत्पन्न नहीं होते। कारण यही है कि देवों में संक्लिष्ट पुनः तत्काल न तो नरकगति में ही उत्पन्न होते हैं और न देवगति में उत्पन्न होते हैं। वे मनुष्य एवं तिर्यंचगति में ही उत्पन्न होते हैं। (२) प्रागति-पहली रत्नप्रभादि तीन नरक भूमियों के नारक जीव नरकगति का आयुष्य पूर्ण करके मनुष्यगति में आकर तीर्थंकर पद तक प्राप्त कर सकते हैं। चौथी नरक भूमि से निकले हुए जीव मनुष्यगति में प्राकर निर्वाण-मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। पाँचवीं नरकभूमि से निकले हुए नारक जीव मनुष्यगति में आकर सर्व विरति-संयम चारित्र प्राप्त कर सकते हैं। छठी
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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