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________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र [ ३६ : लोकसन्निवेशानादि-अनादितेयं द्रव्यार्थिकनयेन पर्यायाथिकनयापेक्षया लोकस्य सादित्वम् । अतः प्रागमशास्त्रैः कथंचित् सादि कथंचित् अनादि अपि विवक्षितम् । तहि लोकः कः कतिविधो वा कि संस्थितो वेति ? लोक: पञ्चास्तिकायसमवायः । ते तु अस्ति कायाः स्वतत्त्वतो विधानतः लक्षणतश्चोक्ताः । क्षेत्रविभागेन स लोकः त्रिविधः कथितः । यो हि अधस्तिर्यगूर्ध्वञ्च । धर्माऽधर्मास्तिकायौ लोकव्यवस्थाहेतू । तयोरवगाहविशेषाल्लोकानुभावनियमात् सुप्रतिष्ठकवज्राकृतिर्लोकः । गोकन्धराधरार्धाकृतिः अधोलोकः । भूमयः सप्ताधोऽधः पृथुतराच्छत्रातिच्छत्रसंस्थिता। अनुक्रमतश्च झल्लाकृतिः तिर्यग्लोकः, मृदङ्गाकृतिः ऊर्ध्वलोकः । सम्पूर्णस्य वज्राकृतिः वा प्रायतीकृतपादाभ्यां कटौ न्यस्तहस्तौ वीर कोऽपि पुरुषः ॥ ३-६ ।। * सूत्रार्थ-रत्नप्रभादि सातों नरकों के नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयुष्य की स्थिति अनुक्रम से एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तेंतीस सागरोपम है ॥ ३-६ ।। 卐 विवेचनामृत ॥ लोक की प्रत्येक गति के जीवों की स्थिति यानी आयुष्य की मर्यादा जघन्य और उत्कृष्ट दो प्रकार की होती है। जिससे कम न हो' आयुष्य की यह स्थिति जघन्य कही जाती है; तथा 'जिससे अधिक न हो' आयुष्य की वह स्थिति उत्कृष्ट कही जाती है। इस सूत्र में नारकी जीवों की उत्कृष्ट प्रायुष्य स्थिति का ही निर्देश है। जघन्य स्थिति का वर्णन आगे अ. ४ सूत्र ४३-४४ में किया जायेगा। [१] पहली रत्नप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम है। [२] दूसरी शर्कराप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य को उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम है। [३] तीसरी वालुकाप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम है। [४] चौथी पंकप्रभा नरकभूमि में नारकी जीवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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