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________________ २० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३५ सुख-साधन प्राप्त हैं, तो भी पूर्वजन्मकृत तीव्र दोष के कारण इन्हें दूसरों को सताने में-संताप देने में ही विशेष प्रसन्नता का अनुभव होता है। बेचारे नारकी जीव कर्मवश अशरण होकर जीवन पर्यन्त असह्य तीव्र वेदना सहन करते हैं। चाहे वेदना कितनी ही क्यों न हो, नारकी जीव को किसी की भी शरण नहीं है और न उनका प्रायुष्य अपवर्तनीय (यानी न्यून होने वाला) है कि जिससे दुखः शीघ्र समाप्त हों। अर्थात् अनपवर्तनीय आयुष्य के कारण उनका जीवन भी जल्दी समाप्त नहीं होता है। * सारांश-तीसरी नरकभूमि तक रहे हुए पन्द्रह प्रकार के जो अम्बादिक परमाधामी हैं, वे नूतन उत्पन्न हए नारकी के निकट में सिंहगर्जना करते हए चारों तरफ से आकर कहते हैं कि-"अरे! इस दुष्ट पापी को मारो! छेदो! भेदो! इसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डालो।" इस तरह कह करके वे भाला, तलवार आदि अनेक प्रकार के शस्त्रों का उपयोग करते हुए नरक के जीवों को मारते हैं, बींधते हैं तथा छेदते हैं । (१) अम्ब जाति के परमाधामी अनेक प्रकार के भय उत्पन्न करते हैं। वे नारकी जीवों को भय से इधर-उधर दौड़ाते हैं। आकाश में ऊँचे उछाल कर धीमे से मस्तक के बल नीचे पटकते हैं। नीचे पड़ते उसको वज्रमय शलाकाओं से बींधते हैं। मुद्गरादिक से उस पर अति सख्त प्रहार करते हैं। (२) अम्बर्षि जाति के परमाधामियों द्वारा घात से मूच्छित तथा निश्चेतन जैसे बने हुए नारकियों के देह-शरीर कर्पणियों द्वारा कापकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं । (३) श्याम जाति के परमाधामी भी उसके अंगोपांगों को छेदते हैं तथा घटिकालय में से निकाल कर नीचे वज्रमय भूमि पर फेंकते हैं। वज्रमय अणीदार दण्ड के द्वारा उसको बींधते हैं, उस पर चाबुक के प्रहार करते हैं तथा उसको अपने पाँव से भी खूदते हैं। (४) शबल जाति के परमाधामी नारकी जीवों के उदर-पेट और हृदय को चीरते हैं, तथा उसकी अाँतें चरबी और मांस इत्यादि बाहर निकाल कर उसे दिखाते हैं-दर्शन कराते हैं। (५) रुद्र जाति के परमाधामी नारकी जीव पर असि-तलवार चलाते हैं, त्रिशूल, शूल तथा वज्रमय शूली आदि में उसको पिरोते हैं तथा धधकती अग्नि की चिता में उसे होम देते हैं। (६) उपरुद्र जाति के परमाधामी नारकी जीवों के अंगोपांगों के खण्ड-खण्ड करके उन्हें बहुत वेदना उत्पन्न करते हैं। (७) काल जाति के परमाधामी दुःख से रुदन करते हुए नरक के जीव को पकड़ कर उसे कड़ाही आदि में जीवित मछलियों की भाँति पकाते हैं । महाकाल जाति के परमाधामी नरक के जीव को उसी के शरीर में से सिंह की पूछ जैसे आकार वाला कौड़ी प्रमाण मांस का टुकड़ा काट कर उसी को खिलाते हैं।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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