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________________ ६८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ परिशिष्ट-१ + मूलसूत्रम् कल्पोपपन्ना कल्पातीताश्च ॥ ४-१८ ॥ * तस्याधारस्थानम्वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा [प्रज्ञापना प्रथम पद सूत्र ५०] 卐 मूलसूत्रम् उपर्युपरि ॥४-१६ ॥ * तस्याधारस्थानम्ईसाणस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि इत्यादि । [प्रज्ञापना पद २, वैमानिक देवाधिकार] 卐 मूलसूत्रम् सौधर्मशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्मलोक-लान्तक-महाशुन-सहस्रारेष्वानत-प्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु अवेयकेषु विजय-वैजयन्त-जयन्ता-ऽपराजितेषु सर्वार्थसिद्ध च ॥ ४-२० ॥ * तस्याधारस्थानम् सोहम्म ईसाण सणंकुमार माहिद बंभलोय लंतग महासुक्क सहस्सार प्राणय पाणय प्रारण अच्चुय हेट्ठिमगेवेज्जग मज्झिमगेवेझग उवरिमगेवेझग विजय वेजयंत जयंत अपराजिय सव्वट्ठसिद्धदेवा य । [प्रज्ञा. पद ६, अनुयोग सू. १०३, औप. सिद्धाधिकार] 5 मूलसूत्रम् स्थिति-प्रभाव-सुख-ति-लेश्या-विशुद्धीन्द्रिया-ऽवधिविषयतोऽधिकाः ॥४-२१ ॥ गति-शरीर-परिग्रहाभिमानतो हीनाः ॥४-२२ ॥ * तस्याधारस्थानम् (१)....महिड्ढीया महज्जुइया जाव महाणुभागा इड्ढीए पण्णत्ते, जाव अच्चुभो, गेवेज्जणुत्तरा य सव्वे महिड्ढीया....। [जीवाभिगम. प्रतिपत्ति ३, सूत्र २१७ वैमानिकाधिकार (२) सोहम्मीसाणेसु देवाकेरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमारणा विहरंति ? गोयमा ! इट्ठा सद्दा इट्ठा रूवा जाव फासा एवं जाव गेवेझा अणुतरोववातिया णं अणुत्तरा सदा एवं जाव अणुतरा फासा।। [जीवाभिगम. प्रतिपत्ति ३, सूत्र २१६, प्रज्ञापना पद २, देवाधिकार]
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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