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________________ ४१५३ ] चतुर्थोऽध्यायः * सूत्रार्थ-तारामों से शेष ज्योतिष्क देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग है ।। ४-५३ ।। + विवेचनामृतक ताराओं से शेष जो ज्योतिष्क देव हैं, उनकी अपरा-जघन्या स्थिति पल्योपम का एक चतुर्थ भाग है। अर्थात् शेष ज्योतिष्क देवों की जघन्य स्थिति [१] पल्योपम है। सारांश-ताराणों की जघन्य स्थिति ऊपर के सूत्र में बता दी है। ज्योतिष्क देवों के सूर्यादि चार भेदों में जघन्य स्थिति की विचारणा करने की रहती है। ज्योतिष्क के चार भेदों में भी सूर्यचन्द्र इन्द्रों की, उनकी इन्द्राणियों की तथा विमान के अधिपति देवों की जघन्य स्थिति नहीं है। इसलिए यहाँ शेष तरीके सूर्यादिक चार विमानों में रहने वाले सामान्य देव समझने चाहिए ।। ४-५३ ।। 9 भवनपति देव-देवियों की उत्कृष्ट स्थिति का कोष्ठक (यन्त्र) निकाय देव और देवियाँ उत्कृष्ट स्थिति नागकुमारादि * दक्षिण दिशा के देवों की १ सागरोपम की नव * दक्षिण दिशा की देवियों की ३॥ पल्योपम की * उत्तर दिशा के देवों की साधिक एक सागरोपम की असुर कुमार देव-देवियाँ * उत्तर दिशा की देवियों की ४|| पल्योपम की १॥पल्योपम की * दक्षिण दिशा के देवों की* दक्षिण दिशा की देवियों कीके उत्तर दिशा के देवों की* उत्तर दिशा की देवियों की ०॥ पल्योपम की १॥ पल्योपम की देशोन पल्योपम की 卐 प्रत्येक प्रकार के भवनपति निकाय के देव-देवियों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की जाननी।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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