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________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ४१५१-५३ * तारकारणां उत्कृष्टस्थितिः * 卐 मूलसूत्रम् तारकाणां चतुर्भागः ॥ ४-५१ ॥ * सुबोधिका टोका * तारकाणां च पल्योपमचतुर्भागः परा स्थितिः भवतीति ।। ४-५१ ।। * सूत्रार्थ-प्रकीर्णक तारामों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का चतुर्थभाग है ॥ ४-५१ ।। 5 विवेचनामृत तारापों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग है। अर्थात्-तारामों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम है। तारापों की जघन्य स्थिति आगे के सूत्र में बताते हैं ।। ४-५१ ।। * ज्योतिष्कदेवानां जघन्यस्थितिः * 卐 मूलसूत्रम् जघन्या त्वष्टभागः ॥४-५२॥ * सुबोधिका टीका * तारकाणां तु जघन्या स्थितिः पल्योपमाष्टभागः भवतीति ।। ४-५२ ।। * सूत्रार्थ-ताराओं की जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवाँ भाग है ॥ ४-५२ ।। + विवेचनामृत ताराओं की जघन्य स्थिति का प्रमाण एक पल्योपम का आठवाँ भाग मात्र है। अर्थात्ताराओं की जघन्य स्थिति पल्योपम है ॥ ४-५२ ।। 卐 मूलसूत्रम् चतुर्भागः शेषाणाम् ॥ ४-५३ ॥ * सुबोधिका टीका * तारकाभ्यः शेषाणां ज्योतिष्काणां अपरा स्थितिः चतुर्थभागः पल्योपमस्य भवतीति ।। ४-५३ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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