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________________ + समर्पण विश्ववन्ध-विश्वविभु-चरमतीर्थंकर श्रमणभगवान महावीर परमात्मा के विद्यमान जैनशासन में तथा उन्हीं के पंचम गणधर-श्रुतकेवली श्रीसुधर्मास्वामीजी की सुविहित पट्टपरम्परा के ७४ वें पाटे आये हुए शासनसम्राटसूरिचक्रचक्रवत्ति - तपोगच्छाधिपति-भारतीयभव्यविभूति-महान्प्रभावशालि - अखण्डब्रह्मतेजोमूर्ति-चिरन्तनयुगप्रधानकल्प - वचनसिद्धमहापुरुष-श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीनतीर्थोद्धारक - श्रीवलभीपुरनरेशाद्यनेकनृपतिप्रतिबोधक - प्रातःस्मरणीय-परमोपकारी-परमगुरुदेव-परमपूज्याचार्यमहाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. श्री को तथा ७५ वें पाटे आये हुए उन्हीं के दिव्यपट्टालंकारसाहित्यसम्राट् - व्याकरणवाचस्पति - शास्त्रविशारद - कविरत्न-साधिकसप्तलक्ष श्लोकप्रमाणनूतन-संस्कृतसाहित्यसर्जक - परमशासनप्रभावक - निरुपमव्याख्यानामृतवर्षी - बालब्रह्मचारी - परमोपकारी - प्रगुरुदेव - परमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. श्री को एवं उन्हीं के ७६ वें पाटे आये हुए उन्हीं के प्रधानपट्टधर-धर्मप्रभावक-शास्त्रविशारद - कविदिवाकर - व्याकरणरत्नपरमपूज्याचार्यवर्य श्रीमद्विजयदक्षसूरीश्वरजी गुरु महाराजश्री को कृतज्ञभाव से यह 'अनुपम ग्रन्थ' सविनय....सादर....सबहुमान समर्पित AMAVALARITALIKA -प्राचार्यविजयसुशीलसूरि rwaldwldwidhwaldwaldiowaldiwalMINS
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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