SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) प. पू. आ. श्रीमद् विजय विज्ञानसूरीश्वरजी म. सा. (५) प. पू. आ. श्रीमद् विजय पद्मसूरीश्वरजी म. सा. (६) प. पू. प्रा. श्रीमद् विजय अमृतसूरीश्वरजी म. सा. (७) प. पू. प्रा. श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. (८) प. पू. आ. श्रीमद् विजय कस्तूरसूरीश्वरजी म. सा. उपर्युक्त आठ प्राचार्य-भगवन्तों के सान्निध्य में भव्य समारोह में १५ गणिवरों को पंन्यास पद प्रदान किया गया था। उनमें गणिवर्य श्री दक्षविजयजी महाराज भी थे और मैं भी सम्मिलित था। मेरे संयमी जीवन की नौका के सुकानी ऐसे परमोपकारी परमपूज्य प्रगुरुदेव प्राचार्यप्रवर श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. ने मुझे ४५ आगमों के योगोद्वहन विधिपूर्वक कराये, व्याकरण-न्याय-साहित्य-आगमशास्त्रादिक का अध्ययन कराया, वि. सं. १९८८ साल से लगाकर वि. सं २०२० फागण (चैत्र) वद ६ के दिन (खिमाड़ा गाँव में पण्डितमरणे समाधिपूर्वक कालधर्म पाकर स्वर्ग सिधाये वहाँ) तक मुझे अपने साथ ही रखा और प्रतिदिन शासनप्रभावना के प्रत्येक प्रतिष्ठादि शुभ कार्यों में प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाया। आज भी मेरे जीवन के प्रत्येक कार्य में अदृश्यरूपेण उन्हीं की असीम कृपा काम कर रही है और मुझ पर सर्वदा शुभाशिष बरसा रही है ।) [३] प. पू. साहित्यसम्राट् के प्रधानपट्टधर-धर्मप्रभावक-शास्त्रविशारद-कविदिवाकरव्याकरणरत्न-स्याद्यन्तरत्नाकराद्यनेकग्रन्थसर्जक-देशनादक्ष-वडीलबन्धु पूज्यपाद प्राचार्य गुरु महाराज श्रीमद् विजय दक्षसूरीश्वरजी म. सा. का मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूँ जिन्होंने वि. सं. २०२१ महा सुद तीज के दिन राजस्थान-मारवाड़ के मुडारा गाँव में ६१ छोड़ के उद्यापनयुक्त महामहोत्सव में मुझे उपाध्याय पद तथा महा सुद पंचमी (वसन्त पञ्चमी) के दिन प्राचार्य पद प्रदान किया और साथ में शास्त्रविशारद, साहित्यरत्न एवं कविभूषण की पदवी से भी समलङ्कृत किया। मैं इन सभी महान् विभूतियों परम पूज्य गुरुदेवों का परम ऋणी हूँ और इनके अनुग्रह का आकांक्षी भी। -प्राचार्य विजय सुशीलसूरि
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy