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________________ prmmmmmmmmmmm । ऋण स्वी का र lnomromsomon [ १ ] जगत् में जिनका अनुपम पुण्यप्रभावसाम्राज्य सदा विजयवन्त प्रवर्त्त रहा है ऐसे जैनशासन के सम्राट् परमोपकारी प्रातःस्मरणीय परमगुरुदेव परमपूज्य आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. का मैं परम आभारी हूँ जिनकी पावन निश्रा में वि. सं. १९८८ महा सुद पंचमी (वसन्त पञ्चमी) के दिन गुजरात के श्री सेरीसा तीर्थ में मेरी उपस्थापना यानी बड़ी दीक्षा महोत्सव पूर्वक हुई थी। तथा जिन्होंने संयम के पवित्र पथ में प्रतिदिन मेरी आत्मा को ज्ञान-ध्यानादिक में और आध्यात्मिक प्रगति-प्रवृत्ति में आगे बढ़ाया। आज भी मेरे जीवन के प्रत्येक कार्य में अदृश्य रूप में उन्हीं की असीम कृपा काम कर रही है और मुझ पर सदा शुभाशिष बरसा रही है। [ २ ] परमपूज्य शासनसम्राट् के दिव्यपट्टालङ्कार-साहित्यसम्राट्-व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद-कविरत्न-साधिकसप्तलक्षश्लोकप्रमाणनूतनसंस्कृतसाहित्यसर्जक-परमशासनप्रभावक-परमोपकारी-प्रगुरुदेव-परमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमद् विजय लावण्य सूरीश्वरजी म.सा. का मैं चिर ऋणी हूँ जिनकी शुभनिश्रा में वि. सं. १६८८ कात्तिक (मगसर) बद द्वितीया के दिन मेवाड़ के श्री उदयपुर नगर में मेरी भागवती-दीक्षा हुई थी। तथा वि.सं. २००७ कात्तिक (मगसर) वद ६ के दिन गुजरात-सौराष्ट्र के श्री वेरावल नगर में महामहोत्सवपूर्वक गरिगपदवी पू. मुनिप्रवर श्री दक्षविजयजी गुरु महाराज के साथ मेरो भो हुई थी। वि. सं. २००७ वैशाख सुद ३ (अक्षयतृतीया) के दिन राजनगरअहमदाबाद में परमपूज्य शासनसम्राट् समुदाय के (१) प. पू. आ. श्रीमद् विजय दर्शनसूरीश्वरजी म. सा. (२) प. पू. आ. श्रीमद् विजय उदयसूरीश्वरजी म. सा. (३) प. पू. प्रा. श्रीमद् विजय नन्दनसूरीश्वरजी म. सा.
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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