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________________ * हिन्दीपद्यानुवाद मति स्मृति संज्ञा चिन्ता, अभिनिबोधक यहाँ ही कहे । पर्याय ये मति शब्द के, नन्दीसूत्रादि में ग्रहे ।। शब्द से अन्तर भले हो, पर अर्थ में अन्तर नहीं। स्वीकृत करें जो वर्तमान, है वहीं मतिज्ञान ही ॥ १० ॥ 卐 मूलसूत्रम् तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४ ॥ अवग्रहहापायधारणाः ॥ १५ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद मतिज्ञान की उत्पत्ति के, दो ही कारण को कहा। प्रथम इन्द्रियहेतु को और, द्वितीय मन को ही कहा ।। अवग्रह-ईहा-अपाय-धारणा भेद ये चार हैं। निर्मल करें जो बुद्धि को, मतिज्ञान के ये भेद हैं ॥ ११ ॥ 卐 मूलसूत्रम् ____ बहु-बहुविध-क्षिप्रा-निःसृता (संदिग्ध)-नुक्तध्र वाणां सेतराणाम् ॥ १६ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद अल्प बहु बहुविध एकविध, क्षिप्र और अक्षिप्र हैं । अनिःसृत निःसृत तथा, संशययुक्त और वियुक्त हैं ।। ध्र व और अध्र व ग्राही, इम द्वादश ये भेद को। छ से गुणी, गुणो चार से, मान दो सौ अट्ठासी को ॥ १२ ॥ 卐 मूलसूत्रम् अर्थस्य ॥ १७ ॥ व्यञ्जनस्यावग्रहः ॥१८॥ न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ॥ १६॥
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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