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________________ ॐ मूलसूत्रम् तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥ २ ॥ तन्निसर्गादधिगमाद् वा ॥३॥ * हिन्दीपद्यानुवाद तत्त्वभूत पदार्थ की जो, शुभ रुचि हृदय में विस्तरे । तब शुद्धदर्शन प्रगटतां ए, भविक भवसिन्धु से तरे ।। सम्यग् - दर्शन प्राप्ति के, दो हेतु सूत्रमही कहा । निसर्ग या अधिगम गुरु का, जिसे जीव सुदर्शन लहा ।। ३ ।। ॐ मूलसूत्रम् __ जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥ ४ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद जीव और अजीव ये दो, ज्ञेय तत्त्वरूपे जानना । आस्रव तथा बन्ध ये दो, हेय तत्त्वरूपे त्यागना ।। संवर-निर्जरा-मोक्ष ये, तीन उपादेय तत्त्व हैं। ग्रही योग्य इन तीनमांहि, श्रद्धा सदादरणीय है ।। ४ ।। 卐 मूलसूत्रम् नाम-स्थापना-द्रव्य-भावतस्तन्न्यासः ।।५।। * हिन्दीपद्यानुवाद नाम स्थापना द्रव्य भावे, तत्त्व सप्त विचारिये । निक्षेपादि चार थकी ए, सर्व भाव से भाविये ।। द्रव्य से नहिं द्रव्य जीव, किन्तु वह है उपचार से । गुरुगम्यता से जानिये, उस ज्ञान को अति स्नेह से ।। ५ ।। ॐ मूलसूत्रम् प्रमाणनयैरधिगमः ।। ६॥ * हिन्दीपद्यानुवाद जीवादि सातों तत्त्व को, प्रमाण नय से जानिये । ज्ञान उसका हो विशद पर, वस्तुतत्त्व विचारिये ।। अनन्तधर्मात्मक वस्तु को अनेक भेद से जो ग्रहे । कहते उसे प्रमाण और, नय एक भेद को सद्दहे ॥ ६ ॥
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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