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________________ ७८ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः सिहरी णाम......सव्वरयणामए। .... जम्बू० सू० १११. बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं णातिवटुंति पायामविक्खंभउव्वेहसंठाणपरिणाहेणं । स्थानांग स्थान २, उ० ३, सू० ८७. उभो पांसि दोहिं पउमवरवेइमाहिं दोहि अ वणसंडेहिं संपरिक्खत्ते । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सू० ७२. छाया- क्षुद्रहिमवान् जम्बूद्वीपे ....... सर्वकनकमयः अच्छः श्लक्ष्णः तथैव यावत् प्रतिरूपः महाहिमवान् नाम ....."सर्वरत्नमयः । निषषः नाम......." सर्वतपनीयमयः। नीलवान् नाम..."सर्ववैडूर्यमयः । रुक्मिः नाम .....""सर्वरौप्यमयः । शिखिरी नाम ..."सर्वरत्नमयः । बहुसमतुल्या अविशेष अनानात्वा अन्योन्यं नातिवर्तन्ते आयामविष्कम्भोत्सेधसंस्थानपरिणाहाः। उभयतो पार्श्वयोः द्वाभ्यां पद्मवरवेदिकाभ्यां द्वाभ्याश्च वनखण्डाभ्यां संपरिक्षिप्तः। भाषा टीका – जम्बूद्वीप में छोटा हिमवान् पर्वत सुवर्णमय अर्थात् पीत वर्ण का है । यह इतना चिकना है कि अपना प्रतिरूप स्वयं ही है । महाहिमवान् सब रत्न मय है तीसरा निषध पर्वत ताये हुए सुवर्ण के समान है। चौथा नील पर्वत वैडूर्यमय अर्थात् मयूर के कंठ के समान नीले रङ्ग का है। पांचवाँ रुक्मि पर्वत चांदी के सदृश शुक्ल वर्ण का है। और छटा शिखरी पर्वत सब प्रकार के रत्नों रूप है।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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