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________________ ७६ ] तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय : पव्वए पएणत्ते । णवणउतिजोअणसहस्साइं उद्धं उच्चतेणं एगं जोमणसहस्सं उव्वेहेणं। __ जम्बूद्वीप० सू० १०३. छाया- जम्बूद्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां सर्वाभ्यन्तरः सर्वक्षुल्लकः वृत्तः...... एक योजनशतसहस्रं आयामविष्कम्भेन । जम्बूद्वीपस्य बहुमध्यदेशभागे अत्रान्तरे जम्बूद्वीपे मन्दरो नाम पर्वतः प्रज्ञप्तः । नवनवतियोजनसहस्राणि ऊर्बोच्चत्वेन एकं योजनसहस्र मुद्वधेन। भाषा टीका - गोल आकार का जम्बूद्वीप सब द्वीप समुद्रों के बीच में सब से छोटा है, इसका विस्तार एक लाख योजन है। ___ जम्बूद्वीप के ठीक बीचोंबीच सुमेरु नाम का पर्वत है, यह पृथ्वी के ऊपर ६६ हजार योजन ऊंचा है, एक हजार योजन यह पृथ्वी के अन्दर है। भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहरण्यवतैरावत - वर्षाः क्षेत्राणि। ३, १०. जम्वुद्दीवे सत्त वासा पएणता तं जहा-भरहे एरवते हेमवते हेरन्नवत हरिवासे रम्यवासे महाविदेहे । स्थानांग स्थान ७ सूत्र ५५५. छाया- जम्बूद्वीपे सप्त वर्षाः प्रज्ञप्ताप्तद्यथा-भरतः ऐरावतः हैमवतः हरिवर्षः रम्यकवर्षः महाविदेहः । भाषा टीका - जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र हैं – भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक वर्ष और महाविदेह । - तहिभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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