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छाया
द्वितीयाध्याय :
वेया ? गोयमा ! इत्थीवेया पुरिसवेया गो नपुंसगवेया जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिय वेमाणियावि । समवायाङ्ग वेदाधिकरण सूत्र १५६.
असुरकुमाराः भगवन् ! किं स्त्रीवेदाः पुरुषवेदाः नपुंसकवेदाः ? गौतम ! स्त्रीवेदाः पुरुषवेदाः नो नपुंसकवेदा:.. कुमारा तथा वानव्यन्तराः ज्योतिष्कवैमानिकारपि ।
.. यथा असुर
[ ६५
प्रश्न
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- भगवन् ! असुरकुमार स्त्रीवेद वाले होते हैं, पुरुषवेद वाले होते हैं अथवा नपुंसक वेद वाले होते हैं ?
उत्तर - गौतम ! वह स्त्री और पुरुष वेद वाले ही होते हैं नपुंसक नहीं होते । असुरकुमारों के समान ही शेष भुवनवासी, व्यम्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक भी स्त्री तथा पुरुष वेद वाले ही होते हैं, नपुंसक नहीं होते ।
शेषास्त्रिवेदाः ।
२, ५२.
भाषा टीका - इनसे बचे हुए शेष जीव तीनों वेद वाले होते हैं।
ऽनपवर्त्यायुषः ।
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संगति- - आगम प्रन्थों में इस विषय का बहुत विस्तार से विवरण दिया गया है। छोटी पंक्ति उपलब्ध न होने से कोई भी पंक्ति न उठायी जा सकी ।
औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषो
२, ५३.
दो महाउयं पालेंति देवाण चेव खेरइयाणं चेव ।
स्थानांग स्थान २, उ०३, सूत्र ८५. देषा नेरइयादि य असंखवासाज्या य तिरमणुभा । उत्तमपुरिसा य तहा चरम सरीरा य निरुवकमा ॥
इति ठाणांगवितीए.