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________________ ५. ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः जोणी । तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-सचित्ता जोणी, अचित्ता जोखी, मीसिया जोणी। तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा - संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संयुडवियडा जोणी । प्रज्ञापना योनिपद ६. छाया- कतिविधा भदन्त ! योनिः प्रज्ञप्ता ? गोतम ! त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता तद्यथा-शीता योनिः, उष्णा योनिः, शीतोष्णा योनिः । त्रिविधा योनिः प्रज्ञता, तद्यथा - सचित्ता योनिः, अचित्ता योनिः, मिश्राः योनिः । त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा - संवृता योनिः, विवृता योनिः, संतृतविठ्ठता योनिः। प्रश्न - भगवन् ! योनियां कितने प्रकार की कहीं गई हैं? उत्तर - गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है - शीत योनि, उष्ण योनि, और शीतोष्ण योनि । तीन प्रकार की योनि कही गई हैं - सचित्त योनि, अचित्त योनि और मिश्र योनि । तीन प्रकार की योनि कही गई हैं- संवृत योनि, विवृत योनि, भौर संवृतविवृत योनि । "जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः। अंडया पोतया जराउया। दशवकालिक अध्याय ४. गम्भवक्कंतियाय । प्रज्ञापना १पद. छाया- अण्डजाः पोतजाः जरायुजाः, गर्भव्युत्क्रान्तिका च। भाषा टीका- अण्डज, पोतज और जरायुज गर्भ जन्म वाले होते हैं। “देवनारकाणामुपपादः॥ २,३४.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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