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अणाहारे णं भंते! अणाहार एत्ति पुच्छा ? गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण, तं जहा - छउमत्थअनाहारए, केवलणागोयमा ! अजहराणमनुकोसेणं तिरिणसमया ।
हारए,
छाया
द्वितीयाध्याय :
प्रश्न
-
- भगवन् ! अनाहार किसे कहते हैं ?
उत्तर – अनाहारक दो प्रकार के कहे गये हैं, छद्मस्थ अनाहारक और केवली अनाहारक । अधिक से अधिक तीन समय तक यह जीव अनाहारक रह सकता है ।
च्र्छनाः
प्रज्ञापना पद १८, द्वार ९४.
अनाहारः भदन्तः अनाहारः इति पृच्छा ! गौतम ! अनाहारकः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- - छद्मस्थानाहारकः केवल्यनाहारकः । ..अजघन्यानुक्रोशेण त्रिसमया ।
छाया
सम्मूर्छनगर्भोपपादाज्जन्म ।
भवन्तिया
अंडया पोतया जराउया
२, ३१.
उत्तराध्ययन ३६ गाथा ११७
"समुच्छिया
'उववाइया । दशवैकालिक अध्याय ४ प्रसाधिकार
सम्मू
[ गर्भव्युत्क्रान्तिकाः ] अंडजाः पोतजाः जरायुजाः
• श्रपपादिकाः ।
भाषा टीका - गर्भज (अंडज, पोतम और जरायुज) सम्मूर्छन और औपपादिक
जन्म होते हैं।
सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः
२, ३२.
कइविहाय भंते! जोणी परणत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णता, तं जहा - सीया जोगी, उसिणा जोगी सीओसिया