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________________ [ १५ न्द्रियार्थावग्रहः, स्पर्शनेन्द्रियार्थावग्रहः, नोइन्द्रियार्थावग्रहः ।। प्रश्न – अर्थावग्रह क्या है । उत्तर - अर्थावग्रह छै प्रकार का कहा गया है -कर्ण इन्द्रिय अर्थावग्रह, चक्षु इन्द्रिय अर्थावग्रह, नासिका इन्द्रिय अर्थावग्रह, रसना इन्द्रिय अर्थावग्रह, स्पर्शन इन्द्रिय अर्थावग्रह और नो इन्द्रिय ( मन ) अर्थावग्रह | प्रथमाध्याय : संगति - मतिज्ञान के उपरोक्त सब भेद 'अर्थ' अथवा प्रगटरूप पदार्थ के हैं। सूत्र में अर्थ को प्ररूप पदार्थ और व्यञ्जन को अप्रगट रूप पदार्थ कहा गया है। इस सूत्र में प्रगट रूप पदार्थ का उपसंहार किया गया है । अस्तु, प्रगट रूप पदार्थ के भेदों का विस्तार निम्नलिखित है । मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा यह चार भेद हैं । फिर प्रत्येक के बहु बहुविध आदि के भेद से बारह २ भेद हैं, जो बारह को चार से गुणा देने से अड़तालीस हुए। इनमें से प्रत्येक भेद का ज्ञान पांचों इन्द्रिय और मन की अपेक्षा छ २ प्रकार से होता है । अस्तु अड़तालीस को छै में गुरणा देने से २८८ भेद प्रगट रूप (अर्थ) मतिज्ञान के हुए। अगले सूत्रों में बतलाया जावेगा कि अप्रगट रूप पदार्थ के ४८ भेद होते हैं । जिनको २८८ में जोड़ने से मतिज्ञान के कुल भेद ३३६ होते हैं । 66 "" व्यञ्जनस्यावग्रहः ॥ १. १८ चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् " ॥ " न १. १8 सुय निस्सिए दुबिहे पणत्ते, तं जहा - अत्थोग्गहे चेव बंजणोवग्गहे चेव ॥ स्थानांग स्थान २ उद्देश १ सूत्र ७१. से किं तं बंजरगुग्गहे ? बंजरगुग्गहे चउव्विहे पणणत्ते, तं जहा " “ सोइन्दियबंजरगुग्गहे, घाणिंदियबंजरगुग्गहे, जिब्भिदियबंजरगुग्गहे, फासिंदियबंजरगुग्गहे सेतं बंजरग्गहे ॥ नन्दिसूत्र सूत्र २६.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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