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________________ २४८ ] तत्त्वार्थसूत्रजेनाऽगमसमन्वय : दशम अध्याय केवल ज्ञान का उत्पत्ति क्रम१–मोहनीय कर्म के क्षय होने के पश्चात् [अन्तर्मुहुर्त पर्यन्त क्षोणकषाय नाम का बारहवां गुण स्थान पाकर ] फिर एक साथ ज्ञानावरण, दर्शना. वरण और अन्तराय कमों का क्षय होने से केवल ज्ञान होता है । मोक्ष प्राप्ति क्रम२-बंध के कारणों के अभाव और निर्जरा से समस्त कमों का अत्यन्त प्रभाव हो जाना सो मोक्ष है। ३-मुक्त जीव के औपशमिक आदि भावों और पारिणामिक भावों में से भव्यत्व भाव का भी अभाव हो जाता है । ४-केवल सम्यक्त्व, केवल ज्ञान, केवल दर्शन, और केवल सिद्धत्व इन चार भावों के सिवाय अन्य भावों का मुक्त जीव के अभाव है। ५-समस्त कमों के नष्ट हो जाने के पश्चात् मुक्त जीव लोक के अन्त माग । सक अपर को माता है । ऊर्ध्वगमन का कारण६-७-कुम्हार के द्वारा घुमाये हुये चाक के समान पूर्व प्रयोग से, दर हुई मिट्टी के लेप वाली तुम्बी के समान प्रसंग होने से, एरंड के पीज के समान बंध के नष्ट होने से और अग्नि शिखा के समान अपना निमो स्वभाव होने से मुक्त जाव ऊपर को गमन करता है । अलोक में न जाने कारण८. अलोकाकाश में धर्मास्तिकाय का अभाव होने से गमन नहीं होता है। सिद्धों के भेद९-क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येक बुद्ध बोधित, ज्ञान, अव गाहना, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगों से सिद्धों में भी भेद साधने चाहियें ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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